भूभल’ न्याय व्यवस्था की विसंगतियों पर केन्द्रित सशक्त उपन्यास है

111111111पुस्तक समीक्षा
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पुस्तक-परिचय
भूभल’ (उपन्यास)
लेखिका-डॉ. मीनाक्षी स्वामी
समय को लांघकर रची गई सशक्त कृति: भूभल
निर्भया प्रकरण में दोषी के नाबालिग होने के कारण बच जाने के संदर्भ में मुझे मीनाक्षी स्वामी के बहुचर्चित उपन्यास “भूभल” अनायास ही स्मृतियों में कौंध रहा है।
‘भूभल’ न्याय व्यवस्था की विसंगतियों पर केन्द्रित सशक्त उपन्यास है। ‘भूभल’ बलात्कार के कानूनी पहलू को केंद्र में रखकर लिखा गया यह हिंदी का पहला उपन्यास है। यही इसकी सार्थकता और अनूठापन है। कानून जैसे शुष्क विषय पर केन्द्रित होने पर भी इसमें सरसता और रोचकता इतने सहज प्रवाह में गुंथी हुई है।
कानून और न्याय व्यवस्था के अनेक विरोधाभास जो हाल फिलहाल प्रत्यक्ष दिख रहे हैं, उनका मार्मिक और तार्किक शब्दांकन मीनाक्षी जी ने बड़े ही कौशल से उकेरा है। इस कड़वे पहलू से उपन्यास इस तरह परिचित कराता है कि दिल धक से रह जाता है, पैरों तले की धरती खसक जाती है और स्त्री के पक्ष में दिखने वाले कानून का छद्म खुलकर सामने आ जाता है।
उपन्यास का मूल कथानक न्याय व्यवस्था की वे विसंगतियां हैं जिनके चलते निर्दोष सजा पाता है और दोषी सिर ऊंचा करके चलता है।
कितने भी कानून हों मगर कानूनों की सीमा में बंधा न्यायाधीश केवल निर्णय दे सकता। यह न्याय भी हो यह जरूरी नहीं।
‘‘जानते चाहते हुए भी हम सजा कहां दिलवा पाते हैं। कानूनों ने बांध रखा है हमें।…दुनियादारी के हिसाब से समीकरण बिल्कुल ठीक थे और कानून व्यवस्था के समीकरण तो वैसे भी कमजोर ही थे। रही जज की बात तो साक्ष्य के आधार पर मैं केवल निर्णय दे सकती हूं, वह न्याय हो यह जरूरी तो नहीं।’’ (पृष्ठ 135) ‘‘सारे प्रमाण, गवाह और हालात अपराधी के पक्ष में थे। छीतर और हरिया बरी हो गए। रूपा निर्दोष होकर भी अपराधी बन गई और अपराधी निर्दोष। फैसला लिखकर कंचन बेहद मायूस थी। उसे लग रहा था यह विशेष अदालत भी मर्दों की है। न्यायाधीश की कुर्सी पर बैठकर वह गवाह, सबूत और हालात जैसी मजबूत रस्सी से बंधी थी। भले ही ये रस्सियां झूठे गवाह और सबूत जुटाकर बनाई गई हैं।’’ (पृष्ठ 155) इसके बावजूद लेखिका इस निराशा और हताशा की स्थिति को हावी नहीं होने देती ‘‘इतनी हताशा भी ठीक नहीं है। कानून बनते हैं तो कुछ कमियां भी रह जाती हैं, वे दूर भी हो सकती हैं, कई बार हुई भी हैं। कई कानून पहले थे ही नहीं, वे बने, फिर धीरे-धीरे कमियां दूर की गई। अब भी ऐसा हो सकता है।’’ (पृष्ठ182)
उपन्यास ‘भूभल’ में जन आंदोलन का वही रूप देखने को मिलता है जो दिल्ली गेंग रेप के मामले में जन जागरण की लहर में दिखा। जिस तरह इस लहर ने सरकार पर कानून बनाने के लिए जिस तरह दबाव बनाया वैसा ही दृश्याकंन उपन्यास ‘भूभल’ में है। समय की रफ्तार को रचनाकार समय से पहले पकड़ लेता है। इस बात का सशक्त प्रमाण है, 2011 में प्रकाशित यह उपन्यास।
‘‘जनमत ने दांतों तले उंगली दबा ली। इतनी ताकत है उसमें और वही अनभिज्ञ था अपनी ताकत से।’’ (पृष्ठ 256)
ज्योतिष जोशी
ललित कला एकेडेमी, नई दिल्ली

निर्भया प्रकरण में भारत के इतिहास के सबसे बर्बर बलात्कार कांड में शुमार दिल्ली गैंगरेप कांड के नाबालिग दोषी की रिहाई के संदर्भ में मुझे डॉ. मीनाक्षी स्वामी के बहुचर्चित उपन्यास “भूभल” अनायास ही जेहन रहा हैं !
2011 में लिखित डॉ. मीनाक्षी स्वामी का उपन्यास ‘भूभल’ बलात्कार के कानूनी पहलू पर केन्द्रित है। यही इसकी सार्थकता और अनूठापन है क्योंकि इस पहलू को केंद्र में रखकर लिखा गया उपन्यास है। कानून जैसे शुष्क विषय के बावजूद इसमें सरसता और रोचकता सहजता से गुंथी हुई ! आज के सन्दर्भ में यह उपन्यास जनमानस और कानून के निर्मातों को बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करता हैं !
अशोक लोढ़ा, नसीराबाद (राजस्थान)

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