(राजस्थान उच्च न्यायालय जयपुर का मामला)
जयपुर, राजस्थान उच्च न्यायालय की एकलपीठ के न्यायाधीश श्री एन. एम. भंडारी ने प्रबन्ध समिति, सैनी प्राथमिक विद्यालय की रिट याचिका खारिज करते हुये व्यवस्था दी है कि संस्था की गलती से भुगतान में देरी के कारण यदि ब्याज मूलधन से ज्यादा हो तो भी संस्था को भुगतान करना पड़ेगा। उल्लेखनीय है कि प्रार्थी धन्ना लाल सैनी 39 साल की सेवा उक्त संस्था में करने के पश्चात् दिनांक 31.03.1999 को सेवानिवृŸ हुआ और अपने अधिवक्ता डी. पी. शर्मा के जरिये राजस्थान गैर सरकारी शैक्षणिक संस्था अधिकरण के समक्ष याचिका प्रस्तुत की और निवेदन किया कि उसे ग्रेच्यूटी, उपार्जित अवकाश के बदले वेतन, चयनित वेतनमान का लाभ दिलवाया जावे। उक्त फैसले की पालना में संस्था के द्वारा प्रार्थी को आदेश दिया कि उसके खाते में कोई उपार्जित अवकाश बकाया नहीं है। ग्रेच्यूटी की गणना दिनांक 01.01.1993 से करते हुये मात्रा 9 वर्ष की सेवावधि की ग्रेच्यूटी का हकदार माना। प्रार्थी ने निष्पादन याचिका अलवर सिविल न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की। सिविल न्यायाधीश ने संस्था को आदेश दिया कि वह न्यायालय के फैसले की पालना करे परन्तु संस्था के द्वारा एक रिवीजन याचिका उच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की जिसमें उच्च न्यायालय ने संस्था की याचिका स्वीकार करते हुये आदेश दिया कि ग्रेच्यूटी की राशि कितनी बनती है तथा उपार्जित अवकाश के बारे में कितना भुगतान करना है इस बारें में प्रार्थी पुनः अधिकरण में संस्था के आदेश को चुनौती दे सकता है। प्रार्थी ने पुनः राजस्थान गैर सरकारी शैक्षिक संस्था अधिकरण के समक्ष याचिका दायर की और तर्क दिया कि प्रार्थी नियुक्ति तिथि से लेकर सेवानिवृŸि तक 39 साल की सेवावधि की ग्रेच्यूटी प्राप्त करने का अधिकारी है तथा उपार्जित अवकाश के बदले वेतन भी पाने का अधिकारी है तथा प्रार्थी को 12 प्रतिशत ब्याज प्राप्त करने का हकदार भी माना, इसके विरूद्ध संस्था ने पुनः राजस्थान उच्च न्यायालय में रिट याचिका दायर करते हुये तर्क दिया कि ग्रेच्यूटी की मूल राशि से अधिक ब्याज का आदेश अधिकरण नहीं दे सकती क्योंकि ग्रेच्यूटी भुगतान अधिनियम में यह प्रावधान है कि ग्रेच्यूटी की राशि से अधिक ब्याज नहीं हो सकता। इसके विपरीत प्रार्थी के अधिवक्ता डी पी शर्मा का तक था कि ग्रेच्यूटी से ब्याज अधिक होने का कारण संस्था के द्वारा प्रार्थी कर्मचारी को अनावश्यक मुकदमेंबाजी में उलझाना था यदि संस्था प्रार्थी को समय पर ग्रेच्यूटी का भुगतान करती तो ग्रेच्यूटी के ब्याज की राशि मूल से अधिक नहीं होती तथा संस्था की तरफ से जिस प्रावधान का हवाला दिया गया वह केवल उन परिस्थितियों में लागू होता है जहॉं ग्रेच्यूटी कन्ट्रालिंग अथॉरिटी द्वारा दिलवाई जाती है न कि राजस्थान गैर सरकारी शैक्षिक संस्था अधिनियम के मामले में। उच्च न्यायालय ने संस्था को आदेश दिया कि प्रार्थी वरिष्ठ नागरिक है इसलिये उसे 4 माह में सम्पूर्ण राशि का भुगतान करे।

प्रार्थी रेलवे श्रमिक सहकारी बैंक लि. बीकानेर राज. से दिनाक 31.3.2013 को रिटायर्ड हुआ किन्तु ग्रेच्यूटी का भुगतान रिश्वत नही देने पर नही किया डिप्रेशन से प्रार्थी के हदय मे 90% ब्लोकेज हो गये दवाओं के लिए पैसे नहीं है जीवन मृत्यु से सघर्ष कर रहा है, सिविल न्यायालय मे केवल तारीख पडती है