स्वामी विवेकानन्द के अनमोल विचार

swami-vivekananda thumbउठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक आपको अपना लक्ष्य प्राप्त ना हो जाये।
ब्रह्माण्ड कि सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वो हमीं हैं जो अपनी आँखों पर हाथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अन्धकार है!
किसी की निंदा ना करें, अगर आप मदद के लिए अपना हाथ बढ़ा सकते हैं तो ज़रुर बढाएं, अगर नहीं बढ़ा सकते, तो अपने हाथ जोड़िये, अपने भाइयों को आशीर्वाद दीजिये, और उन्हें उनके मार्ग पर जाने दीजिये।
अगर धन दूसरों की भलाई करने में मदद करे या उनके काम आए तो इसका कुछ मूल्य है, अन्यथा यह धन सिर्फ बुराई का एक ढेर है, और इससे जितना जल्दी छुटकारा मिल जाये उतना बेहतर है |
उस व्यक्ति ने अमरत्त्व प्राप्त कर लिया है, जो किसी सांसारिक वस्तु से व्याकुल नहीं होता |
जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भगवान पर भी विश्वास नहीं कर सकते।
जिस दिन आपके सामने कोई समस्या न आये – आप यकीन कर सकते हैकी आप गलत रास्ते पर सफर कर रहे है।
हम जितना ज्यादा बाहर जायें और दूसरों का भला करें, हमारा ह्रदय उतना ही शुद्ध होगा, और परमात्मा उसमे बसेंगे।
बाहरी स्वभाव केवल अंदरूनी स्वभाव का बड़ा रूप है।
जब कोई विचार अनन्य रूप से मस्तिष्क पर अधिकार कर लेता है तब वह वास्तविक भौतिक या मानसिक अवस्था में परिवर्तित हो जाता है।
पहले हर अच्छी बात का मज़ाक बनता है, फिर उसका विरोध होता है, और फिर उसे स्वीकार कर लिया जाता है।
दिल और दिमाग के टकराव में दिल की सुनो।
किसी चीज से डरो मत। तुम अद्भुत काम करोगे। यह निर्भयता ही है जो क्षण भर में परम आनंद लाती है।
प्रेम विस्तार है, स्वार्थ संकुचन है। इसलिए प्रेम जीवन का सिद्धांत है।वह जो प्रेम करता है जीता है , वह जो स्वार्थी है मर रहा है। इसलिए प्रेम के लिए प्रेम करो , क्योंकि जीने का यही एक मात्र सिद्धांत है , वैसे ही जैसे कि तुम जीने के लिए सांस लेते हो।
बस वही जीते हैं,जो दूसरों के लिए जीते हैं।
शक्ति जीवन है , निर्बलता मृत्यु है | विस्तार जीवन है, संकुचन मृत्यु है | प्रेम जीवन है, द्वेष मृत्यु है।
शारीरिक , बौद्धिक और आध्यात्मिक रूप से जो कुछ भी आपको कमजोर बनाता है – , उसे ज़हर की तरह त्याग दो।
एक समय में एक काम करो, और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ।
जो तुम सोचते हो वो हो जाओगे। यदि तुम खुद को कमजोर सोचते हो , तुम कमजोर हो जाओगे ; अगर खुद को ताकतवर सोचते हो , तुम ताकतवर हो जाओगे।
आकांक्षा,अज्ञानता,और असमानता–यह बंधन की त्रिमूर्तियां हैं।
जब लोग तुम्हे गाली दें तो तुम उन्हें आशीर्वाद दो। सोचो,तुम्हारे झूठे दंभ को बाहर निकालकर वो तुम्हारी कितनी मदद कर रहे हैं।
खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है।
श्री रामकृष्ण कहा करते थे,”जब तक मैं जीवित हूँ,तब तक मैं सीखता हूँ”.वह व्यक्ति या वह समाज जिसके पास सीखने को कुछ नहीं है वह पहले से ही मौत के जबड़े में है।
स्त्रियो की स्थिति में सुधार न होने तक विश्व के कल्याण का कोई भी मार्ग नहीं है।
भय ही पतन और पाप का मुख्य कारण है।
जितना बड़ा संघर्ष होगा जीत उतनी ही शानदार होगी।
जगत को जिस वस्तु की आवश्यकता होती है वह है चरित्र। संसार को ऐसे लोग चाहिए जिनका जीवन स्वार्थहीन ज्वलंत प्रेम काउदाहरण है। वह प्रेम एक -एक शब्द को वज्र के समान प्रतिभाशाली बना देगा।
अगर आप ईश्वर को अपने भीतर और दूसरे वन्य जीवो में नहीं देख पाते,तो आप ईश्वर को कही नहीं पा सकते।
पढ़ने के लिए जरूरी है एकाग्रता,एकाग्रता के लिए जरूरी है ध्यान।ध्यान से ही हम इन्द्रियों पर संयम रखकर एकाग्रता प्राप्त कर सकते है।

डा. जे. के. गर्ग
डा. जे. के. गर्ग
संभव की सीमा जानने केवल एक ही तरीका है असम्भव से आगे निकल जाना।
स्वयंमें बहुत सी कमियों के बावजूद अगर में स्वयं से प्रेम कर सकता हुँ तो दुसरो में थोड़ी बहुत कमियों की वजह से उनसे घृणा कैसे कर सकता हुँ।
जीवन का रहस्य भोग में नहीं अनुभव के द्वारा शिक्षा प्राप्ति में है।
किसी मकसद के लिए खड़े हो तो एक पेड़ की तरह,गिरो तो बीज की तरह। ताकि दुबारा उगकर उसी मकसद के लिए जंग कर सको।
लगातार पवित्र विचार करते रहे,बुरे संस्कारो को दबाने के लिए एकमात्र समाधान यही है।
जब प्रलय का समय आता है तो समुद्र भी अपनी मर्यादा छोड़कर किनारों को छोड़ अथवा तोड़ जाते है,लेकिन सज्जन पुरुष प्रलय के समान भयंकर आपत्ति एवं विपत्ति में भी अपनी मर्यादा नहीं बदलते।
दुनिया मज़ाक करे या तिरस्कार,उसकी परवाह किये बिना मनुष्य को अपना कर्त्तव्य करते रहना चाहिये।
कर्म का सिद्धांत कहता है– ‘जैसा कर्म वैसा फल’.आज का प्रारब्ध पुरुषार्थ पर अवलम्बित है।‘आप ही अपने भाग्य विधाता है’|यह बात ध्यान में रखकर कठोर परिश्रम पुरुषार्थ में लग जाना चाहिये।
जिंदगी बहुत छोटी है,दुनिया में किसी भी चीज़ का घमंड अस्थाई है पर जीवन केवल वही जी रहा है जो दुसरो के लिए जी रहा है,बाकि सभी जीवित से अधिक मृत है।
हमारा कर्तव्य है कि हम हर किसी को उसका उच्चतम आदर्श जीवन जीने के संघर्ष में प्रोत्साहन करें;और साथ ही साथ उस आदर्श को सत्य के जितना निकट हो सके लाने का प्रयास करें।
एक विचार लो | उस विचार को अपना जीवन बना लो–उसके बारे में सोचो उसके सपने देखो,उस विचार को जियो | अपने मस्तिष्क,मांसपेशियों,नसों,शरीर के हर हिस्से को उस विचार में डूब जाने दो,और बाकी सभी विचार को किनारे रख दो | यही सफल होने का तरीका है।
प्रस्तुती एवं सकलंकर्ता—डा.जे. के. गर्ग
सन्दर्भ—गूगल सर्च, विकीपीडिया, भारत ज्ञान कोष आदि
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