
ब्यावर ने भाजपा को क्या नही दिया…? कभी कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाले ब्यावर ने भाजपा की वोटो से थोक में झोली भरने में भी देरी नही की। अबके तो हाईकमान भी दंग रह गया। भाजपा को विधान सभा चुनाव में रिकार्ड वोटो से जीता दिया। चुने गये विधायक यह गलत फहमी पाल बेठे कि वे इतने लोकप्रिय हो गये हे…! जबकि जनता ने तो भाजपा को ही सिर माथे बिठाया हे। यही नही ब्यावर वासियों ने और एक कदम आगे बढ़ते हुए लोकसभा चुनावों में सब रिकार्ड ही ध्वस्त कर डाले। लोकसभा की आठो ही विधान सभाओं के मुकाबले ब्यावर ने सर्वाधिक बम्पर वोटो से जीत दिलाई। भाजपा की आँखे फटी की फटी रह गई। ब्यावर का दुर्भाग्य कि विजयी उम्मीदवार ने ब्यावर को ही बिसरा दिया।
ब्यावर किसी से कोई खैरात नही मांग रहा हे। यह उसका हक हे। जिले का आवश्यक सभी धरातल यहाँ मौजूद हे। उसे ब्यावरवासी अब बार बार गिनाने की जरूरत नही समझते। ब्यावर से कही छोटे छोटे शहर जिला मुख्यालय बन गये। ब्यावरवासी खून के आंसू रोने को बेबस हे। वे अपने आंसू दिखावे भी तो किसको…?? उनके तो नेताओ का पानी ही मर गया हे। ऐसा ही तो बिखरा, लुंझ-पूंझ थका हारा विपक्षी दल हे। दूसरी ओर हमारे वे जनप्रतिनिधि हे जो विपक्ष में रहते जोर शोर से पद यात्रा करते हुए हुंकार भरते रहे। सत्ता में बैठते ही मुंह पर ताला ठोक कर चाभी ही गुमा बेठे…! भोले-भाले ब्यावरवासी…! आखिर करे भी तो क्या? उनका तो राजनेतिक नेतृत्व ही शून्य पर खड़ा हो गया दिखता हे।
ब्यावरवासी अब तो स्वयं को ठगा हुआ महसूस कर रहे हे। ब्यावर की गोद से जिला स्तरीय सरकारी कार्यालय धीरे धीरे खिसकते जा रहे हे। वे कार्यालय जिनके अपने ब्यावर में होने से जिले का भ्रम पाले वह अब तक बेठा था। वह इससे भी दुखी हे कि जिसे उसने सींचा सवारा। उसी के अलग अलग राज के दौरान ही उसे पीड़ा पहुंचाने का कुकर्म किया जा रहा हे। आज से दस बरस पूर्व इसी राज में अजमेर जिले की नाक। ब्यावर में कार्यरत जिला मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (cm&ho) कार्यालय को ब्यावर से छीन लिया गया। उसी दौरान यहाँ से दूरदर्शन केन्द्र को भी हटा दिया गया। सत्ता में बेठे स्थानीय विधायक मूक बने ब्यावर को पिटते देखते रहे। यही नही उसके बाद विगत चार पांच वर्ष पूर्व ब्यावर से राजस्थान वित्त निगम कार्यालय को भी ब्यावर से भी छोटे शहर किशनगढ़ को दे दिया गया। तब तो हमारे जनप्रतिनिधि विपक्ष में थे। फिर भी मौन साध लिया। अबकी और लो…। टी बी केन्द्र भी ब्यावर के हाथ से खिसक गया। अन्य जिला स्तरीय चिकित्सकीय परियोजना भी खटाई में पड़ गई लगती हे। जनप्रतिनिधि मालुम नही क्यों मुँह में दही जमाए बेठे हे। अब तो “लाल बत्ती” के आस की भी शायद दौड़ अब खत्म हो गई हे। ब्यावर के हक की आवाज उठाने के लिये अब किसका डर हे।
कोई पच्चीसेक साल पहले मेने मेरीे पत्रकारिता के अनुभव के चलते ब्यावर के जिला नही बनने की बात कही भी और लिखी भी। तब भी सपना दिखाने वाले नेताओं को मेरा कहना नागवार ही गुजरा। उसके बाद तो लोकल राजनेताओं की हालत तो और भी पतली ही हुई हे। कुछ और भी याद दिला दू…। ब्यावर के देश प्रसिद्ध पानी आन्दोलन की बुनियाद भी भाजपा के राज में ही लिखी गई थी। मुझे गर्व हे कि साथी पत्रकारों के साथ उसमे मेरी भी भागीदारी रही। मुकदमे फिर अशोक गहलोत ने हटाए। बाकी रहे शेष वसुन्धरा राजे ने हटवाये। भाजपा को राष्ट्र भक्ति से लबलेज पार्टी मानता हू। क्यों कि इसकी पीठ पर आरएसएस हे। जिसकी देश भक्ति पर किसी को कोई किंचित मात्र भी संदेह नही हे। विपक्षियो को अगर दिल से पूछे तो उनको भी नही। खेर…यह सब बाद में। अब तो बजट आने वाला हे। नेताओं ने तो ब्यावरवासियो का भरोसा तोड़ दिया हे। अब ईश्वर ही कोई इनकी कोई खेर खबर ले ले तो भला हो सके।
सिद्धार्थ जैन पत्रकार, ब्यावर।