
नहीं बनें बदरंग कभी ।।
एक नई पहचान रहे ,
सदा पर्व का मान रहे ।
बहुरंगी भी बनें यदि ,
नहीं बनें बदरंग कभी ।
रंगों का भी अनुपम खेल,
इनमें भी होता है मेल ।
सही मेल हो, मिलन तभी,
नहीं बनें बदरंग कभी ।
रंग- बिरंगे हम सारे ,
माँ की आँखों के तारे ।
सदा एक थे, एक अभी,
नहीं बनें बदरंग कभी ।
-नटवर विद्यार्थी
सारिका कुञ्ज
डीडवाना-341303