संविधान की प्रस्तावना में ही लिखा गया है “We the People Of India, having solemnly resolved to constitute INDIA into a SOVEREIGN SOCIALIST SECULAR DEMOCRATIC REPUBLIC and to secure to all its citizen’s :- ……….
…………………………..
साथ ही संविधान की धारा 19 देश के प्रत्येक नागरिक को बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी देती है जिसमे आलोचना, समालोचना , प्रशंसा , सभी सम्मलित है ? इस लिए अगर देशमे अच्छे कामो की प्रशंसा होती है और अगर कोई समस्या है तो उसकी आलोचना तो होगी ही इसमें सरकार चलाने वाली पार्टी के अध्यक्ष के गुर्दे क्यों लाल हो जाते है ?
मैं देश की निम्न आलोचना कर रहा हूँ :
इस देश में गरीब, पिछड़े, दलित, शोषित समाज का कोई स्थान नहीं है, दिली राजधानी में ही लाखों लोग जो पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, और छत्तीस गढ़ से आकर निजी फैक्ट्रियों में काम 5 से 7 हजार रूपये महावार पर कार्य करते हैं ? जो नारकीय जीवन जीने पर मजबूर हैं ? जब की उसी दिल्ली में रहने वाले हजारों लोग ऐसे है जिनकी कृषि आय ही करोडो में है?
रेल — भारत में दुनिया का सबसे बड़ा नेटवर्क है लाखों की संख्या में रेलगाडी चलती है ? आज 67 वर्ष बाद भी जब देश में बुलैट ट्रेन चलाने की बात होती है तो ऐसा लगता है कि हम आज भी गुलाम ही है जहाँ देश का सारा संसाधन केवल कुछ पूंजीपतियों के ही हाथ में है और सरकार भी ऐसे लोगों का खाश ध्यान रखती है ? किसी भी रेलवे स्टेशन पर यह नजारा देखा जा सकता है जहाँ 20-22 डब्बों की ट्रेन में कुलजमा 4 डब्बे जन साधारण के लिए यानि आरक्षित होते है जिनमे लोग किसी जानवर की तरह आड़े तिरछे बैठ कर या खड़े होकर और लटक कर यात्रा करने पर मजबूर होंगे ?
अब ऐसे लोग अगर देश की प्रशंसा करे तो कैसे कर सकते है? यह एक सवाल जरूर खड़ा हो जाता है और दूसरी और इस बात की आलोचना को कोई बर्दास्त नहीं करे तो यह उसकी ठेकेदारी की समस्या तो जरूर हो सकती है लेकिन उसके पास बर्दास्त करने के अतिरिक्त विकल्प क्या है ? बर्दास्त तो करना ही पड़ेगा ?
एस. पी. सिंह, मेरठ।