प्रेयसी

उर्मिला फुलवरिया
उर्मिला फुलवरिया
प्रेयसी अपने प्रियतम के प्रति अपने ख्वाबों को मनमोहक शब्दों से प्रेम की अभिव्यंजना करते हुए उसके जीवन के लिए शुभ मंगलमय कामना कर रहीं है ।

प्रियतम के संग प्रेम की अभिव्यंजना रूपी माला का, प्रेममयी शब्दों के मनको द्वारा प्रस्तुति …

स्वप्निल सपनों का आगमन
मृदुलित मद भ्रमरों सा तन
झीनी-झीनी चुनरियाँ से झाँकता यौवन
दिल ड़ोल कहता तुमसे है मेरा अपनापन ।

कटार सी तीखी है नयनों की धार
आतुर लब करती हुँ तुझ पर वार
हृदय स्पन्दन से जुड़ा हुआ तु यार
सदियों तक बना रहेगा अपना प्यार ।

केशुओ की घनभरी छाँव में
सपनों के संतरगी गाँव में
खड़ा प्रतिक्षित एक विरान घरोन्दा
निज में समेटे मिलन के विश्वास में ।

कनक प्रभा सी तेरी कांति
महसूस कर मिट जाए सारी भ्रांति
धधकते प्यासे जिगर ने भड़काई क्रांति
प्यार दे सकता सिर्फ अब शांति ।

रोम-रोम पुलकित हो रहा आनन्द रस से
अठखेलियाँ कर रहे वसन भी अब मुझसे
हृदय की प्रतिध्वनित ध्वनि कह रही तुमसे
बाँहों के पाशो में मुझको ले लो मन से।

घट में एक छवि करती है वास
उससे विलग जिंदगी की नहीं आस
तेरे संग ही चलती मेरी हर श्वास
तेरे हिय में ही मेरा प्रिय प्रवास ।

तिमिराँचल की अंश मेखला में
होले-होले, धीरे-धीर नभ में
आलोक से आलोकित एक दिपक
बेसुध हो खोज रहा तुमको सब में ।

अधराये अधरों की खामोश आतुरता
तुमसे मिलन की मन में व्याप्त व्याकुलता
मेघ गर्जन से शोला है भड़कता
मुझमें बस दूर कर मेरी निरवता ।

खग कलरव से गुंज्जित उपवन
सुगंध सुरभि फैला रहे सुमन
अमानुषित कृत्य का प्यार करता है शमन
हिलोरे ले भ्रमर दल छू रहे तन-मन ।

छलक रही मंगलमय कलश से पीयूष की धारा
सरोबारित हो इससे तेरा आँगन सारा
चिरकाल से दिल फिर रहा था मारा-मारा
जीवन पर्यन्त नहीं छोड़ेगे एक दूसरे का लारा ।

उषा काल की शुभ अमिट वेला में
इन्द्रधनुष के रंगों को समेटे संग में
टकटकी लगाए अधपथराये दो बैचेन दृग
खुशियों का मौन निमंत्रण दे रहे जग में ।

कर बन्धन से तुझको अभिनन्दन
करती हूँ बार-बार तेरा वन्दन
निखरे तेरा बन जीवन अनमोल कुन्दन
इस वर्ष शान्त हो जाए तेरा हर क्रन्दन ।।

-उमा फुलवारिया
पाली-मारवाड़

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