मेवाड़-मुकुट मणि–राष्ट्र रत्न महाराणा प्रताप

डा. जे. के. गर्ग
डा. जे. के. गर्ग
महाराणा प्रताप की 476वीं जन्म जयंती पर कृत्यज्ञ राष्ट्र के श्रद्धा सुमन )
[जन्म–जेयष्ट शुक्ला तर्तीया,विक्रम सवंत 1597(जेयष्ट शुक्ला तर्तीया,विक्रम सवंत 1597 (15मई 15मई 1540) पूण्यतिथि–19जनवरी1597]
अकबर केमहाराणा प्रताप का सबसे बड़े शत्रु थे किन्तु अकबर एवम् राणाप्रताप की लड़ाई व्यक्तिगत द्वेष के स्थान पर स्वतंत्रता के सिद्धांतो और मेवाड़ की अस्मिता को अक्षुण रखने के लिये थी । जहाँ अकबर अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था वहीं,जब की एक तरफ यह थे वहीं राणाप्रताप अपनी मातृभूमि की स्वाधीनता के लिए संघर्ष कर रहे थे ।महाराणा प्रतापमेवाड़ की अस्मिता के प्रतिक तो हैं ही उनका नाम देशभक्ति,स्वाभिमान और दृढ प्रण के लिये सम्मान के साथ लिया जाता है। उन्होंने जीवन पर्यन्त मेवाड़ की आजादी एवं अस्मिता के लिए मुगल बादशाहअकबरके साथ अपने सीमित साधनों के साथ संघर्ष किया एवं कभी भी अकबर की आधीनता स्वीकार नहीं की।महाराणा प्रताप का जन्म राजस्थान के कुम्भलगढ में महाराणा उदयसिंह एवं माता राणी जीवत कँवर के यहाँ हुआ पर 15 मई 1540 (जेयष्ट शुक्ला तर्तीया,विक्रम सवंत 1597 ) को हुआ था|महाराणा प्रताप को बचपन में कीका के नाम से पुकारा जाता था। महाराणा प्रताप का राज्याभिषेकगोगुन्दामें हुआ। कहा जाता है कि महाराणा प्रताप ने अपने जीवन में कुल 11 शादियाँ की थी|
मेवाड़ को जीतने के लिये अकबर ने सभी प्रयास किये किन्तु वो सफल नहीं हो सका। निरंतर सघर्ष के कारण महाराणा की आर्थिक हालत दिन-प्रतिदिन कमजोर होती गई एवं एक बार तो वो विचलित भी हो गये|इस युद्ध में अपने प्रियजनों,मित्रो,सैनिको और घोड़े चेतक को खोने के बाद महाराणा प्रताप ने प्रण किया था कि वो जब तक मेवाड़ वापस प्राप्त नहीं कर लेते घास की रोटी खाएंगे और जमीन पर सोएंगे। अपने जीवनकाल में उन्होंने अपना यह प्रण निभाया और अकबर की सेना से युद्ध करते रहे। उनके जीते जी अकबर कभी चैन से नहीं रह पाया और मेवाड़ को अपने आधीन नहीं कर सका।महाराणा प्रताप के मृत्यु परअकबरको बहुत ही दुःख हुआ क्योंकि ह्रदय से वो महाराणा प्रताप के गुणों का प्रशंसक थे । विपत्तियोंके इन क्षणों में भामाशाह ने अपने जीवन की सारी कमाई को राणाप्रताप को अर्पित कर मेवाड़ की रक्षा हेतु लड़ाई चालू रखने का निवेदन किया | भामाशाह की यह आर्थिक सहायता लगभग 25000 राजपूतों की सेना के 12 साल तक का वेतन और निर्वाह के लिए पर्याप्त थी|अपनी दानशीलता के लिए भामाशाह भी इतिहास पुरुष बने इसीलिये आज भी कई राज्यों में उनके नाम से जन कल्याणकारी योजनायें चला रहें हैं|
1579से1585तक पूर्व उत्तर प्रदेश,बंगाल,बिहार और गुजरात के मुग़ल अधिकृत प्रदेशो में कई जगह विद्रोह होने लगे थे इसलिये अकबर इन विद्रोह को दबाने मे उलझा रहा और जिसके फलस्वरूप मेवाड़ पर मुगलो का दबाव कम हो गया इन परिस्थितियों का का लाभ उठाकर महाराणा प्रताप ने1585में मेवाड़ मुक्ति के प्रयासों को तेज कर लिया । महाराणा प्रताप की सेना ने मुगल चौकियां पर गुरिल्ला आक्रमण प्रारम्भ कर दिए जिसके फलस्वरूप उदयपूर सहित36महत्वपूर्ण स्थानों पर फिर से महाराणा प्रताप का अधिकार पुनः स्थापित हो गया । महाराणा प्रताप ने जिस समय सिंहासन ग्रहण किया,उस समय जितने मेवाड़ की भूमि पर उनका अधिकार था पूर्ण रूप से उतने ही भूमि भाग पर अब उनकी सत्ता फिर से स्थापित हो गई थी । बारह वर्ष के संघर्ष के बाद भी अकबर उसमें कोई परिवर्तन न कर सका । और इस तरह महाराणा प्रताप समय की लंबी अवधि के संघर्ष के बाद मेवाड़ को मुक्त करने मे सफल रहे और ये समय मेवाड़ के लिए एक स्वर्ण युग साबित हुआ,उसके बाद महाराणा प्रताप उनके राज्य की सुख-सुविधा एवं जनसाधारण के कल्याणकारीकार्यों को पूरा करने मे जुट गए|दुर्भाग्य से ग्यारह वर्ष के बाद ही19जनवरी1597में अपनी नई राजधानी चावंड मे राष्ट्र रत्न राणाप्रताप का निधन हो गया|
अब्दुर्रहीम खान ए खाना ने राणाप्रताप को सम्बोधित करते हुए कहा था“’धर्म रहेगा औरप्रथ्वीभी रहेगी पर मुग़ल-साम्राज्य एक दिन नष्ट हो जायगा,अत: हे राणा! विश्वम्भर भगवान के भरोसे अपने निश्चय को अटल रखना।
कहते हैं कि राणाप्रताप के निधन का समाचार सुनअकबर रहस्यम तरीके से मौन हो गये और उसकी आँख में आंसू आ गए ।अपनी मातृभूमि की स्वाधीनता के लिए अपने पूरा जीवन का बलिदान कर देने वाले ऐसे वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप और उनके स्वामिभक्त अश्व चेतक को शत-शत कोटि-कोटि प्रणाम ।7 जून 2016 यानी जेयष्ट शुक्ला तर्तीया, विक्रम सवंत 2073 को राजस्थान के साथ समूचा देश मेवाड़ मुकुट मणि महाराणा प्रताप की 476 वीं जयंती बना रहा है | मेवाड़ की अस्मिता एवम्म आजादी के लिये जीवन पर्यन्त संघर्ष करने वाले इस जन नायक को शत शत नमन |
संकलनकर्ता डा. जे. के गर्ग
सन्दर्भ—गूगल सर्च,विभिन्न पत्रिकाएँ,सरकार,जदुनाथ (1994).A History of Jaipur: c. 1503 – 1938�,आइराना भवन सिंह (2004).महाराणा प्रताप — डायमंड पोकेट बुक्स.pp.28,आदि
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