इस घटिया राजनेतिक सोच के करण आजादी के बाद राजस्थान में ये दौ जातियाँ एक दूसरे को अपना प्रतिद्वन्दी समझने लगी है । पार्टियो और सरकार को अपने नीतिगत विचारो से इस तनाव को कम किया जा सकता है और अभी जो तनाव हुआ है उस तनाव को सरकार की जागरूकता रोक सकती थी ।
सरकार का कार्य अपने राज्य में हर घटना पर पैनि नजर रखना होता है और उस पर त्वरित और निष्पक्ष कार्यवाही करना होता है यदि ऐसा होता तो जैसलमेर की ये घटना जातिय अखाडा नही बनती पहली ही नजर में दोषी लोगो पर कार्यवाही और पिड़ित परिवार को सहायता मिल जाती तो राजपूत आंदोलन भी नही होता और कोई ये नही कहता की राजपूतो के दबाव में आकर एक हमारे अधिकारी पर कार्यवाही की गई है ।
ये सरकार की गलती है जिसने राजपूतो को आंदोलन करने पर विवश किया और निर्णय की देरी ने जाटों को मुद्धा बनाने का अवसर प्रदान किया ।
अब इनका ये निर्णय गले की हड्डी बनता नजर आ रहा है ।
महेन्द्र सिंह भेरूंदा
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