अंकुरित भोजन

dr. j k garg
dr. j k garg
अंकुरित चने और सत्तू को देश के विभिन्न भागों में प्रात:काल के नास्ते में खाया जाता है|अंकुरित दानों का सेवन केवल सुबह नाश्ते के समय ही करना चाहिये। अंकुरित आहार को शरीर को नवजीवन देने वाला अमृतमय आहार भी कहा जाता है।
अंकुरित भोजन क्लोरोफिल,विटामिन (`ए´, `बी´, `सी´, `डी´और`के´)कैल्शियम,फास्फोरस,पोटैशियम,मैगनीशियम,आयरन,जैसे खनिजों का अच्छा स्रोत होता है।
अंकुरीकरण की प्रक्रिया में अनाज/दालों में पाए जाने वाले कार्बोहाइट्रेड व प्रोटीन और अधिक सुपाच्य हो जाते हैं।
अंकुरित आहार भोजन की सप्राण खाद्यों की श्रेणी में आता है।यह पोषक तत्वों का स्त्रोत माना गया है । अंकुरित आहार न सिर्फ हमारे Immune System को मजबूत बनाता साथ हमें उर्जावान बनाता है |बल्कि शरीर का आंतरिक शुद्धिकरण कर रोग मुक्त भी करता है । अंकुरित आहार अनाज या दालों के वे बीज होते जिनमें अंकुर निकल आता हैं इन बीजों की अंकुरण की प्रक्रिया से इनमें रोग मुक्ति एवं नव जीवन प्रदान करने के गुण प्राकृतिक रूप से आ जाते हैं।अंकुरित भोजन मनुष्य को सुन्दर स्वस्थ और रोगमुक्त बनाता है।यह महँगे फलों और सब्जियों की अपेक्षा सस्ता है,इसे बनाना खाना बनाने की तुलना में आसान है इसलिये यह कम समय में कम मेहनत से तैयार हो जाता है।बीजों के अंकुरित होने के पश्चात् इनमें पाया जाने वाला स्टार्च- ग्लूकोज,फ्रक्टोज एवं माल्टोज में बदल जाता है जिससे न सिर्फ इनके स्वाद में वृद्धि होती है बल्कि इनके पाचक एवं पोषक गुणों में भी वृद्धि हो जाती है।
अनाजों व दालों के अंकुरण से उनमें उपस्थित अनेक पोषक तत्वों की मात्रा दोगुनी से भी ज्यादा हो जाती है,मसलन सूखे बीजों में विटामिन’सी’की मात्रा लगभग नहीं के बराबर होती है लेकिन अंकुरित होने पर लगभग दोगुना विटामिन सी इनसे पाया जा सकता है।अंकुरण की प्रक्रिया से विटामिन बी कॉम्प्लेक्स खासतौर पर थायमिन यानी विटामिन बी-1,राइबोप्लेविन यानी विटामिन बी-2 नायसिन की मात्रा दोगुनी हो जाती है।इसके अतिरिक्त’केरोटीन’नामक पदार्थ की मात्रा भी बढ़ जाती है,जो शरीर में विटामिन ए का निर्माण करता है। अंकुरीकरण की प्रक्रिया में अनाज/दालों में पाए जाने वाले कार्बोहाइट्रेड व प्रोटीन और अधिक सुपाच्य हो जाते हैं। अंकुरित करने की प्रक्रिया में अनाज पानी सोखकर फूल जाते हैं,जिनसे उनकी ऊपरी परत फट जाती है व इनका रेशा नरम हो जाता है। परिणामस्वरूप पकाने में कम समय लगता है और वे बच्चों व वृद्धों की पाचन क्षमता के अनुकूल बन जाते हैं।
अंकुरित चना बनाने का तरीका—-
सर्वप्रथम चने को साफ करके प्रातःकालएक शीशे के जार में भर लें शीशे के जार में बीजों की सतह से लगभग चार गुना पानी भरकर भीगने देंइतने पानी में भिगोएं जितना पानी चना सोख ले। एवं रात में साफ,मोटे,गीले कपडे़ या उसकी थैली में बांधकर लटका दें। गर्मी में12घंटे और सर्दी के मौसम में18से24घंटों के बाद भिगोकर गीले कपड़ों में बांधने से दूसरे,तीसरे दिन उसमें अंकुर निकल आते हैं। गर्मी में थैली में आवश्यकतानुसार पानी छिड़कते रहना चाहिए। इस प्रकार चने अंकुरित हो जाएंगे।अंकुरित चनों का नाश्ता एक उत्तम टॉनिक है। अंकुरित चनों में कुछ व्यक्ति स्वाद के लिए कालीमिर्च,सेंधानमक,अदरक एवं नींबू का रस भी मिलाते हैं परन्तु यदि अंकुरित चने को बिना किसी मिलावट के साथ खाएं तो अधिक लाभकारी है।चने में अंकुरण के7दिन बाद तक मिनरल्स और विटामिन्स भर पूर मात्रा में रहते हैं। इन्हें7दिनों के अन्दर ही खा लेना अच्छा है। अंकुरित दाने सलाद के रूप में कच्चे या उबाले हुये दोनों तरीके से खाये जा सकते हैं,या आप इनसे अपनी मन पसन्द कोई डिश भी बनाकर खा सकते हैं। सलाद के रूप में कच्चे या उबाले हुये दोनों तरीके से खाये जा सकते हैं।
अंकुरित भोजन को कच्चा,अधपका और बिना नमक आदि के प्रयोग करने से अधिक लाभ होता है। एक दलीय अंकुरित (गेहूं,बाजरा,ज्वार,मक्का आदि) के साथ मीठी खाद्य (खजूर,किशमिश,मुनक्का तथा शहद आदि) एवं फल लिए जा सकते हैं।
द्विदलीय अंकुरित (चना,मूंग,मोठ,मटर,मूंगफली,सोयाबीन,आदि) के साथ टमाटर,गाजर,खीरा,ककड़ी,शिमला मिर्च,हरे पत्ते (पालक,पुदीना,धनिया,बथुआ,आदि) और सलाद,नींबू मिलाकर खाना बहुत ही स्वादिष्ट और स्वास्थ्यदायक होता है।इसे कच्चा खाना ज्यादा अच्छा है क्यों कि पकाकर खाने से इसके पोषक तत्वों की मात्रा एवं गुण में कमी आ जाती है।
अंकुरित करने से पूर्व समबन्धित अनाज से मिटटी,कंकड़ ,इलें आदि निकलकर साफ कर लें। प्रातः नाश्ते के रूप में अंकुरित अन्न का प्रयोग करें । प्रारंभ में कम मात्रा में लेकर धीरे-धीरे इनकी मात्रा बढ़ाएँ। अंकुरित अन्न अच्छी तरह चबाकर खाएँ। नियमित रूप से इसका प्रयोग करें।वृद्धजन,जो चबाने में असमर्थ हैं वे अंकुरित बीजों को पीसकर इसका पेस्ट बनाकर खा सकते हैं। ध्यान रहे पेस्ट को भी मुख में कुछ देर रखकर चबाएँ ताकि इसमें लार अच्छी तरह से मिल जाय।
सकलंन कर्ता—–डा.जे.के.गर्ग
सन्दर्भ—विकीपीडिया,गूगल सर्च

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