अब है कहा इँसानियत

ओम माथुर
ओम माथुर
इन्सानियत कोई आज नहीं मरी है। इसने तो बहुत पहले ही दम तोड़ दिया है। जिस समाज मे आज लोगों को अपने बूढे माता पिता बोझ लगते हो और वो उन्हें वृद्धाश्रम भेजने मे भी नहीं झिझकते हो। जिस समाज मे सँस्कारो से ज्यादा सम्मान साधन और सुविधा सम्पन्न लोगों को दिया जाता हो। जिस समाज मे पैसा ही माई बाप बन जाए और यह जानना गौण हो जाए कि उसे मेहनत से कमाया गया है या भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी और चोरी चकारी से। जहां आए दिन महिलाओं की इज्जत तार तार की जाती हो। जहां बेटियां आज भी कोख मे मार दी जाती हो। जहां अस्पतालो मे इलाज मरीज की बीमारी देखकर नहीं उसकी हैसियत और जेब देखकर किया जाता हो। जहां सियासत हथियाने और चमकाने के लिए नेता दँगे कराने और निरदोष लोगों की जान लेने मे नहीं हिचकते। जिस समाज मे बाल और महिला शोषण सामान्य बात हो गई हो। जहां सडक पर सोने वाले गरीबों को कुचलने वाले बाइज्जत बरी हो जाते हो। जहां पुलिस दोषियों के बजाय बेगुनाह लोगों पर ही जुल्म ढाती हो। वहां ये उम्मीद कैसे की जा सकती है कि सडक पर घायल पडे युवक को कोई अस्पताल पहुँचा देगा। दिल्ली मे टेम्पो की टक्कर के बाद सडक पर मरा युवक मरी हुई इँसानियत का प्रतीक भर हैं। चैनलों पर घर मे बैठकर इसे देखने वाले अफसोस जता रहे होँगे,लेकिन इससे उनमें इँसानियत जाग उठेगी.यह सोचना भी बेमानी होगा। जयपुर मे भी तीन सल पहले घाट की गूणी सुरँग मार्ग मे भरी दोपहर एक ट्रक ने बाइक सवार परिवार को कुचल दिया था। तब युवक खून से लथपथ अपनी पत्नी तथा बच्चे को बचाने के लिए चीखता रहा,पर कोई नहीं रूका और दोनों की जान चली गई। जब लोइ चीखते युवक की मदद को नहीं रुके तो दिल्ली मे बेहोश युवक की सहायता के लिए कौन रूकता। जयपुर -दिल्ली नहीं,अब इँसानियत समाज और लोगों का साथ ही छोड़ चुकी हैं या फिर हमने ही इसे मुसीबत समझ दिलोदिमाग से निकाल दिया।

ओम माथुर,अजमेर.9351415379

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