राजस्थान के लोक देवता तेजाजी -Part 1

(माघ शुक्ला, चौदस संवत 1130 —- भाद्रपद शुक्ल 10 संवत 1160) (29 जनवरी 1074– 28 अगस्त 1103)

dr. j k garg
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कहा जाता है कि तेजाजी के जन्म के समय तेजा की माता को एक आवाज सुनाई दी – “कुंवर तेजा ईश्वर का अवतार है किन्तु यह तुम्हारे साथ अधिक समय तक नहीं रहेगा” | तेजाजी ने मरते समय तक “प्राण जाहि पर वचन नहीं जाहि” का अक्षरश पालन किया | ब्यावर का तेजाजी का मेला तो पूरे देश में प्रसिद्ध |. भीलवाड़ा में तेजाजी को सभी धर्मों के लोग मानते हैं | आदिवासी समाज में भी तेजाजी की अत्याधिक मान्यता है | तेजाजी का स्वार्गारोहण 33 वर्ष की अल्प आयु में हो गया था | तेजाजी के निर्वाण दिवस भाद्रपद शुक्ल दशमी को प्रतिवर्ष तेजादशमी के रूप में मनाया जाता है। निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि आज भी वीर तेजाजी युवाओं के लिए आदर्श पुरुष ही हैं |
जन्म: लोक देवता तेजाजी का जन्म नागौर जिले में खड़नाल गाँव के मुखिया ताहरजी (थिरराज) के यहाँ माघ शुक्ला, चौदस 1130 यथा 29 जनवरी 1074 को हुआ था । तेजाजी के पिता गाँव के मुखिया थे। तेजाजी के माता-पिता ताहरजी (थिरराज) और रामकुंवरी शंकर भगवान के भक्त थे | कहा जाता है कि शंकर भगवान के वरदान से तेजाजी की प्राप्ति हुई | तेजाजी का जन्म शिवभक्त रामकंवरी की पवित्र कोख से हुआ | कुछ लोग कलयुग में तेजाजी को शिव का अवतार मानते हैं | तेजा जब पैदा हुए तब उनके चेहरे पर विलक्षण तेज था जिसके कारण इनका नाम तेजा रखा गया | कहा जाता है किउनके जन्म के समय तेजा की माता को एक आवाज सुनाई दी – “कुंवर तेजा ईश्वर का अवतार है किन्तु यह तुम्हारे साथ अधिक समय तक नहीं रहेगा” |
सम्पादन एवं प्रस्तुतिकरण—–डा.जे,के.गर्ग सन्दर्भ—-विकीपीडिया,गूगल सर्च, विभिन्न पत्रिकायें, श्री पी.एन. ओक की पुस्तक Tajmahal is a Hindu Temple Palace, दी इल्ल्सट्रेड वीकली ऑफ़ इंडिया के 28 जून 1971 का संस्करण आदि please visit our blog—-gargjugalvinod.blogspot.in
विवाह: लोकगाथाओं के मुताबिक तेजाजी का विवाह उनके बाल्यकाल में ही पनेर गाँव में रायमल्जी की पुत्री पेमल के साथ हो गया था किन्तु शादी के कुछ समय बाद ताहरजी और पेमल के मामा में अनबन एवं वादविवाद हो जाने की वजह से पेमल के मामा की म्रत्यु हो गई जिसके कारण परिवार वालों ने तेजाजी को उनके पेमल के साथ शादी के बारे में नहीं बताया | तेजाजी के गावं में ज्येष्ठ महीने की पहली बारिश हो गई थी सभी गावं वाले ज्येष्ठ मास की वर्षा बहुत शुभ मानते थे | उस वक्त गावं में परंपरा थी की वर्षा होने पर कबीले के मुखिया सबसे पहिले खेत में हल जोतने की शुरुहात करते थे और उसके बाद ही गावं के अन्य किसान हल जोतते थे किन्तु उस समय ना तो गावं के मुखिया ताहरजी और ना ही उनका बड़ा पुत्र गाँव में मोजूद था | ईसीलिये मुखिया की पत्नी रामकुवंर ने अपने छोटे बेटे तेजा को खेतों में जाकर हळसौतिया का शगुन करने के लिए कहा | माँ की आज्ञानुसार तेजाजी खेतों में पहुँच कर हल चलाने लगे ,काम करते करते दोपहर हो गई एवं तेजाजी भूख से बेहाल होकर अपनी भाभी का बेसब्री से इंतजार करने लगे क्योंकि वही उनके लिये भोजन लेकर आने वाली थी | भाभी बहुत देर के बाद तेजा का खाना लेकर खेतों पर पहुँची | तेजाजी क्रोध में लालपीला होकर अपनी भाभी को खरी-खोटी सुनाने लगे , तेजाजी ने कहा” भाभीजी बैल रात से ही भूखे हैं मैंने भी कुछ नहीं खाया है आपने इतनी देर कैसे लगा दी “, भाभी तेजाजी के उल्हाने से तिलमिला गई और कहने लगी और तेजा तुम्हें तो अपनी भूख की पड़ी है मैने एक मन अनाज पीसा और अनाज पीसने के बाद ढेरों रोटियां बनाई, घोड़ी की खातिरदारी की, बैलों के लिए चारा लाई और छोटे बच्चे को झूले में रोता छोड़ कर तेरे लिये लिये खाना लाई हूँ फिर भी तुम मुझ पर बेवजह गुस्सा कर रहे हो, अगर तुम्हें मुझ से कोई शिकायत है तो तुम्हारी पत्नी पेमल जो पीहर में बैठी है उसे लिवा क्यों नहीं लाते ? भाभी की बातें तेजाजी के दिल में चुभ गई और उन्होंने अपने खाने को फेकं दिया और तेजा तिलमिलाते हुए खेत से सीधे घर आ गये और माँ से पूछा “ मेरी शादी कहाँ और किसके साथ हुई? “ माँ ने उन्हें सारी बातें बताई और कहा तुम्हारा ससुराल गढ़ पनेर में रायमलजी के घर है और तुम्हारी पत्नी का नाम पेमल है| तेजा ससुराल जाने से पहले भाभी से भी आज्ञा लेने लगे तब उसने कहा “देवरजी आप दुश्मनी धरती पर मत जाओ, मैं आपका विवाह मेरी छोटी बहिन से करवा दूंगी”| तेजाजी ने दूसरे विवाह से इनकार कर दिया | तेजाजी की जिद्द को देख भाभी बोली अपनी दुल्हन पेमल का स्वागत करने वाली अपनी बहन राजल को तो पहले पीहर लेकर आओ और उसके बाद ससुराल जाना | तेजाजी अपनी बहन राजल को लिवाने उसकी ससुराल के गाँव तबीजी के रास्ते में थे तब एक मेणा सरदार ने उन पर हमला किया जहाँ भयंकर लड़ाई हुई जिसमें तेजाजी जीत गए | तबीजी पहुँच करके उन्होंने पनिहारियों से राजल के पति जोगाजी सियाग के घर का पता पूछा उनके घर जाकर उनसे इजाजत लेकर अपनी बहिन राजल को खरनाल ले आए |

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