अनुकरणीय रहे जेट्टी के राजा

डॉ. अशोक मित्तल
डॉ. अशोक मित्तल
इस वर्ष कागज़ से बने पर्यावरण मित्र गणेश की स्थापना और विसर्जन दौनों ही अनुकरणीय रहे.. वातावरण को प्रदूषण मुक्त रखने व पर्यावरण की सेवा में ऐसी पहल अनूठी है. काग़ज से गणपति बना कर उनकी स्थापना, रोज़ शाम व्यवस्तित तरीके से पूजा अर्चना करना, सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करना और अंत में श्री गणेश की मूर्ति का पूरे मान सम्मान और आस्था से वहीँ साफ़ पानी से इती-श्री कर के उसकी लुगदी को प्रसाद स्वरुप बाँट देना, जिसे भक्तों और कार्यकताओं ने सर आँखों पर लगाया और अपने अपने घर ले गए. ऐसा अनुकरणीय उदाहरण पेश किया “यूनाइटेड अजमेर” ने, जिसके लिए संस्था के कार्य कर्ताओं को बधाई व ढेर सारी शुभकामनाएं.
किसी घटना का वास्तविक वर्णन करने से पहले उस घटना को रूबरू घटित होते देखना आवश्यक होता है. जिसे पत्रकारिता में रिपोर्टिंग फ्रॉम जीरो ग्राउंड कहते हैं. घर में बैठे बैठे ना तो ब्लॉग, टिपण्णी और ना ही खबर लिख सकते हैं.. ऐसा ही मेरे साथ हुआ जब मैं कल १५ सितम्बर को वैशाली नगर से मारटिंडलल ब्रिज तक गणपति बप्पा की सवारियों को बड़े चाव से देखता रहा. इसी क्रम में गांधी भवन चौराहे पर ट्रेफिक पुलिस की गुमटी पर भी करीब आधा घंटा बिताया और गांधी भवन की छत से भी इस उत्सव के नज़ारे दो घंटे तक निहारे और इनमें निहित भावनाओं, हर अच्छाई और सवारियों से आती लापार ऊर्जा को भी आत्म-सात किया. साथ ही पुरानी और पिछले वर्ष ही मुंबई जाकर गणपति महोत्सव में लाल बाग़ के राजा के हमारी लगाई गयी हाजरी के दौरान की यादें भी दिमाग में आती रहीं..
पारिवारिक, सामजिक, राष्ट्रीय उत्सव होते रहने चाहियें. ये हमारी सभ्यता के परिचायक तो हैं ही हमारे अन्दर फिर से नयी ऊर्जा का संचार भी करते हैं. हमारी धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को संभाल कर रखना और उसे अच्छे से अच्छे स्वरुप में नई जनरेशन को हस्तांतरित करना हमारा कर्त्तव्य है.. ये जिम्मेदारी आज जो हम लोग अभी मौजूद हैं, उन्ही की है.
ऐसी जिम्मेदारी को निभाने में ऐसा ना हो की हम औरों के घर में क्या हो रहा है, उसके बीबी बच्चे क्या गलती कर रहे हैं ये सोच कर पडौसी को पहले सुधारा दिया जाये, इसी ताक-झाँक में और दूसरों को सुधारने में लगे रह जावें और तब तक हमारा ही घर बर्बाद हो जाए. कोई भी सुधार पहले अपने आप से, अपने घर से व उस समूह से शुरू होना चाहिए जिसे हम अपना समझते हैं व अपना कहते हैं. यहाँ यदि कुछ गलत परम्परा शुरू हो रही है जो स्वयं, परिवार या समाज के लिये आगे जाकर घातक हो सकती है तो ऐसी बातों पर टोकना, विरोध व्यक्त करना बुद्धिमानी तो है ही साथ ही स्वयं के, परिवार के या समाज के हित में भी होगा.
माँ तो माँ होती है.
तीन वर्ष पूर्व मेरी मम्मी गणपति उत्सव वाले दिन मुंबई में सड़क पर गिर गयी. जिसे ट्रेफिक जाम व टैक्सी नहीं मिलने से किसी तरह की चिकित्सा सहायता मेरे परिवारजन नहीं पहुंचा पाए. दूसरे दिन सुबह तक कुल्हे व कंधे की हड्डियों के फ्रेक्चर की वजह से होने वाली असहनीय पीड़ा से कराहती रही. मैं हर वर्ष गणपति से प्रार्थना करता हूँ की ऐसा किसी और की माँ के साथ न हो. क्यूंकि, आखिर माँ तो माँ होती है. वो चाहे जिस किसी की भी हो. कोई भी इंसान पहले अपनी जीवंत माँ की सोचेगा या ये सोच के चुप रहेगा की मेरी माँ की तकलीफ उजागर करने या उस दुर्भाग्य पूर्ण घटना पर टिपण्णी करने से कुछ समाज व धर्म के ठेकेदार नाराज़ हो सकते हैं, इसलिए चुप रहो??
साथ ही ये भी सोचता हूँ की आज के हालातों को देखते हुए कहीं मेरे शहर का हाल भी मुंबई जैसा नहीं हो जाए और आप हम जो अब सीनियर सिटीजन हो गए हैं, हड्डियाँ में भी ओस्टोपोरोसिस से अब उतनी मजबूती नहीं रही, कहीं खुदा न खास्ता गिरने से हड्डी तुड़ा बैठे या हार्ट अटैक हो गया और ऐसे हुडदंगी माहोल में हॉस्पिटल ही नहीं पहुँच पाए तो ??
कहीं न कहीं हमें ये सोचना होगा की उत्सव हुडदंग में न बदले, कर्ण प्रिय भजन कहीं हमारी नयी पीड़ी को बहरे ही न बना दे, धार्मिक आयोजन जो आत्मा को शान्ति प्रदान करते हैं वातावरण में अशांति न फैला दें, सड़कों पर लगे जाम उन पीड़ित व जीवन मरण के बीच संघर्ष करते हमारे अपनों की जान ही ना ले ले. कुछ ज़्यादा ही खुशियों को बांटने के चक्कर में किसी के घर को ग़म की सौगात ना दे दें.
एक बार फिर जेट्टी के राजा को नमन करते हुए में लाभ-शुभ के देवता और हर कार्य की अच्छी शुरुआत के लिये सर्वत्र पूज्य – श्री गणेश से प्रार्थना करता हूँ की आपकी पूजा और भक्ति से सबको लाभ मिले और साथ ही आपके उत्सवों से किसी को किसी तरह की पीड़ा न हो.
डॉ. अशोक मित्तल. मेडिकल जर्नलिस्ट

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