आस्था और फूहड़-पने का अजीब संगम है ये !!

डॉ. अशोक मित्तल
डॉ. अशोक मित्तल
पूरे शहर की सड़कों पर बिखरी लाल गुलाल डामर की काली कलूटी शक्लों को गुलाबी रंग की चादर से ढकी सी ऐसी लग रही है जैसे बुझे और बीमार चेहरों पर रौनक आ गयी हो. पूरी फिजां में गुलाल की महक के साथ साथ चोराहों पर ड्यूटी पर तैनात पुलिस वालों के रंगीन कपडे बता रहे हैं की भले ही किसी ने उन पर रंग नहीं फेंका है पर हवा में इतना अत्यधिक मात्रा में पाउडर उछाला गया है की जब पाउडर के महीन कण नीचे सेटल होते हैं तो इनके कपड़ों पर भी सेटल हो हो कर इन्हें रंगीन कर दिया है.
सांस लें तो उसमें भी रंग की खुशबु और यदि चोराहा पार करने में देर लगे तो सांस लेने में ही तकलीफ होने की संभावना, यदि पैदल यात्री दमा का रोगी है तो उसकी तो जान पर भी बन सकती है.
जगह जगह ट्रैफिक के जाम जिसकी वजह से यदि किसी गंभीर मरीज को ले जाना हो या इमरजेंसी हो तो चारों तरफ से सवारियों में निकलते गणपति बप्पा के भरोसे ही उसके उद्धार की कामना करने के सिवाय आपके पास कोई दूसरा चारा नहीं है.
डीजे, ढोल धमाके और गाजे बाजों का कान फोडू शोर इतना भयंकर की अलग अलग पार्टियों के फ़िल्मी धुनों पर बजते भजन आपस में टकराते हैं तो सिर्फ और सिर्फ एक असहनीय और पीड़ा दायक ध्वनि बन के रह जाती है. जिनके असर से आपके कान के परदे यदि सुरक्षित निकल कर आ जाएँ तो समझिये की आपकी टिम्पेनिक मेम्ब्रेन बहुत ही उच्च कोटि की और मजबूत किस्म की है.
फिल्मी धुनों पर भजन और उन पर फूहड़ पने के नाच. बरस बरस म्हारा इन्दर राजा के म्यूजिक में तो धमक (बास) का वॉल्यूम इतना विकराल स्तर का है की मकानों के दरवाजे, शीशे व उपकरण थर थर कम्पन करने लग जाते हैं. और ये धमक व कम्पन कानों व शरीर ही नहीं बल्कि दिल तक को कंपा देती है.
क्या आस्था में ये तकलीफ देह शोर, फूहड़ नाच, आँखों में जाता गुलाल, ट्रैफिक जाम करती ट्रेक्टर पर निकलती सवारियां भारतीय सभ्यता का परिचायक है? क्या वाकई इससे गणपति बप्पा खुश हो कर अपनी इनायतें इन भक्तों पर बरसाते हैं?? तो क्या फिर वे सब बेनसीब होते हैं या कम नसीब वाले हो जाते हैं जो इन सब दिखावे से दूर रहते है.
सड़कों पर बिछि लालिमी क्या वाकई रौनक का प्रतीक है या एक भद्दे चेहरे पर पुती हुई फेस क्रीम है जो क्षणिक सुन्दरता तो देती है पर अंदरूनी वास्तविकता से परे होती है. ख़ुशी और उत्सव मनाने का मतलब क्या यही है की आप झुण्ड बना कर औरों की तकलीफ नज़र अंदाज़ कर दें.
कई बार तो घर में बीमार पडी बूढी माँ और बूढ़े बप्पा को छोड़ सड़कों पर डांस करना ज्यादा ज़रूरी समझते हैं, कुछ लोग. इस सबसे क्या वाकई गणपति बप्पा को अच्छा लगता है की देखो मेरा भक्त मुझमें कितनी आस्था रखता है, की अपनों को भूलकर मेरे उत्सव में शामिल हो रहा है.
मुझे पूर्ण विश्वास है….. गणपति बप्पा…….की.. आप ही कोई राह सुझाएँगे.

डॉ.अशोक मित्तल, मेडिकल जर्नलिस्ट

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