डा. जे.के.गर्गनवरात्रा का उत्सव समाज में महिलाओं को आदर-सम्मान देने की पुरातन परम्परा का साक्षात् प्रमाण है | ऋषि-मुनियों ने नवरात्रा की प्रथम “देवीशैलपुत्री” के जरिये हम लोगों को पहाड़ों के प्राक्रतिक स्वरूप को सुरक्षित बनाये रखने का संदेश दिया है | “देवी ब्रह्मचारिणी”के माध्यम से हमें जीवन में ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए निरंतर ज्ञानार्जन प्राप्त करने का संदेश मिलता है | “देवी चन्द्रघंटा” हम सभी को नारी की सुन्दरता के साथ साथ चन्द्रमा से मिलनेवाली शीतलता,शालीनता,सहनशीलता,सहजता एवं शांति का बोध करवाती है | “देवी कूष्मांडा” को इस स्रष्टी में नारीयों के अस्तित्व का बोध करवाती है | देवी कूष्मांडा को नारी सम्मान तथा स्रष्टी रचना में इन्हें अक्षुण्ण बनाये रखनेवाली देवी के रूप में देखा जाता है | कष्टों, मुसीबतों, विपदाओं (काल) के हरण के प्रतीक में” देवी कालरात्री”, शांति का संदेश वाहक सफेद रंग से सुशोभित माता “महागोरी”, “ देवी सिद्धिदात्री” ( जो जीव मात्र की सुरक्षा,देखभाल करती है वह कल्याणकारी भी है)सभी सिद्धियों को संपुष्ट करने वाली हैं | अत: ये सभी देवियाँ नारीयों में पाये जाने हर प्रकार के गुंणों को स्रष्टी में अक्षुन्न बनाये रखने में सहयोगी बनती हैं | प्रस्तुती– डा. जे.के.गर्ग
सन्दर्भ— मेरी डायरी के पन्ने, विभिन्न पत्रिकाएँ, भारत ज्ञान कोष, संतों के प्रवचन,जनसरोकार, आदि
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