राजस्थानी उपन्यास गोटी

pustak-sameekshaराजस्थानी उपन्यास गोटी को प्रमोदकुमार शर्मा ने आधुनिक लोकजीवन और वर्तमान परिप्रेक्ष्य के रंगों भरे कथानक से संवारा है। यूं प्रमोद शर्मा ने कविताएं और कहानियां भी रची हैं और उनकी लेखनी मानव-मन को पढ़ती हुई कथानक आगे बढ़ाती है। कविताओं को रचने में भी प्रमोद शर्मा अंतरआत्मा को बांचते हुए लगते हैं जो कि उनकी लेखनी की विशेषता बन गई है। आध्यात्मिक विचारों को परिपक्वता का जामा ओढ़ाते हुए प्रमोद शर्मा ने इस उपन्यास गोटी में राजस्थानी माटी की खुशबू और लोक संस्कृति के रंगों को उंड़ेलने में कसर नहीं रखी। लोकजीवन के विविध रंगों से सराबोर राजस्थानी उपन्यासों की एक लंबी श्रृंखला है और गोटी इस श्रृंखला से इतर परिवार, समाज और मयंक जैसे पात्रों की आत्मा को पाठकों के सामने लाती है। संप्रदाय, वर्ग भेद गोटी के पात्रों को एक चक्रव्यूह में ले जाता है और अंततः कारागृह में पहुंचे मयंक का चरित्र पाठकों को समाज, सत्ता के साथ व्यवस्था की वर्तमान दशा और दिशा पर प्रश्नचिन्ह लगाता हुआ एक द्वन्द्व पैदा करने में सफल होता है। इस 96 पृष्ठीय उपन्यास के कुल 31 भाग हैं। इनमें गोटी तैयार है, काचो कुंभ, रूपली पल्लै तो रोही मांय चल्लै, ब्यांव सूं पैली ब्यांव, पैंतरो आदि भागों के ये मुखड़े, शीर्षक उपन्यास के कथानक की प्रगति, उपन्यासकार प्रमोद कुमार के लेखन की शैली के साथ साथ लोक में प्रचलित शब्दों, मान्यताओं को दर्शाने में कामयाब रहे हैं। आम आदमी की बोलचाल की शैली में उपन्यास के संवाद तथा कथानक के उतरोत्तर बढ़ते रहने का अंदाज , मयंक के अपने उपन्यास गोटी के छपने और पाठकों में ख्याति पाने के स्वप्न जैसे दृष्टांत पाठक को अंत तक बांधे रखता है। एक अच्छे उपन्यास के लिए प्रमोद शर्मा को बधाई।

– मोहन थानवी

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