विजयादशमी:—–दूराचार-अत्याचार-अहंकार-बुराई की पराजय और सदाचार-विनम्रता-अच्छाई की विजय का पर्व—भाग-3

डा. जे.के.गर्ग
डा. जे.के.गर्ग
दशहरे का सामाजिक महत्त्व—– हमारे कृषि प्रधान देश में किसानों के लिये उसकी फसल ही उसके जीवनव्यापन का मुख्य जरिया है |जब किसान अपनी मेहनत एवं खून-पसीनें को बाह कर अपने खेत में फसल उगाकर उससे प्राप्त अनाज को घर लाता है तो उसके उल्लास और उमंग की कोई सीमा नहीं होती है, इस खुशी- प्रसन्नता के मोके पर किसान अपनी अच्छी फसल को भगवान की कृपा को मान कर उनकी पूजा-अर्चना करता है। भारतवर्ष के विभिन्न प्रदेशों में यह पर्व विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है। महाराष्ट्र में इसे सिलंगण के नाम से सामाजिक महोत्सव के रूप में भी इसको मनाया जाता है।
निसंदेह विजयदशमी का पर्व हम सभी को अपने जीवन में सच्चाई एवं सत्य के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है क्योंकि बुराई चाहे कितनी भी बलवान क्यूँ ना हो उसे एक न एक दिन सत्य-सच्चाई के सामने हार मान कर नतमस्तक होना ही पड़ता है। राम – रावण युद्ध दो विचारधाराओं का युद्ध है जिसमे शक्तियाँ दोनों पक्षों के पास थी किन्तु श्रीराम के पास जहाँ सत्य -धर्म की शक्ति थी तो वहीं रावण के पास विशाल सेना, माया,आसुरी शक्तियाँ एवं अहंकार की शक्ति थी । सत्य-धर्म की शक्ति के बलबूते पर ही निर्वासित राजकुमार राम ने बंदरों,भालुओं की सहायता से महाशक्तिमान रावण को हरा दिया था।
प्रस्तुतिकरण—-डा. जे.के. गर्ग
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