तामसी प्रव्रत्तियों पर सात्विक प्रव्रत्तियों की विजय का पर्व—–दशहरा—part-3

डा. जे.के.गर्ग
डा. जे.के.गर्ग
तलवार से लगे घावों को तो भरा जा सकता है किन्तु कटु-कर्कश वाणी के घावों को कभी भी नहीं भरा जा सकता है|कर्कश वाणी सिर्फ शत्रु पैदा कर सोहार्दता को समूल नष्ट करती है|
काम वासना योनाचार-अनाचार की जननी है | आदमी काम वासनाओं से अपने को चरित्रहीन बना लेता है एवं अनेकों अनैतिक कार्यो को कर अनेक बीमारियों को बुलावा देता है| काम वासना के वशीभूत होकर ही रावण ने ने माता सीता का बलात अपहरण किया जिसके परिणाम स्वरूप वह भगवान राम के हाथों मारा गया।
लोभ-लालच के वशीभूत होकर रावण ने भगवान शिवजी से अपने लिए सोने की लंका मांग ली एवं लंकापति बन स्वयं को सर्वश्रेष्ठ,शक्तिशाली मान अवांछित कार्यों में लिप्त होने लगा|
रावण की इर्ष्या-डाह-जलन की प्रव्रत्ति की वजह से उसके हितेषी भी मन ही मन उससे दूरी बनाने लगे|इसी वजह से रावण का सगा भाई विभीषन रावण को छोड़ कर राम का शरणार्थी बन गया | आज भी इर्ष्या-जलन की वजह आदमी बेवजह यह सोचकर दुखी रहता है कि मेरा पड़ोसी , मेरे रिश्तेदार, मेरे दोस्त मुझसे ज्यादा सुखी कैसे और क्यों हैं ?
पीठ पीछे किसी की निंदा कर हम अपना ही अहित करते हैं और दूसरों को अपना दुश्मन बनाते है| रावण की परनिंदा की आदत भी उसकी पराजय का कारण बनी|
रावण का अभिमान ही उसके पतन का कारण बना| हम हमारे अभिमान-घमंड की वजह से दूसरों के स्वाभिमान को ठेंस पहुंचाते हैं| कहावत है कि घमंडी का सिर हमेशा नीचा ही रहता है|
दशहरा का पर्व हम सभी को दस प्रकार के पापों यानि काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, मत्सर, अहंकार,आलस्य, हिंसा और चोरी को छोड़ने की प्रेरणा देता है।

प्रस्तुतिकरण—-डा. जे.के.गर्ग
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