राजस्थान की ह्रदय स्थली अजमेर के समीप विश्व विख्यात तीर्थस्थान पुष्कर है, जहाँ प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा (अक्टूबर-नवम्बर ) को प्रसिद्ध’पुष्कर मेलालगता है (हिन्दू मान्यता के अनुसार कार्तिक महीने के अष्टमी के दिन मेला शुरू होकर पूर्णिमा के दिन तक चलता है)।इस मेले में बड़ी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटकों के साथ साथ हजारों हिन्दु भी आते हैं | भक्तगण एवं पर्यटक श्री रंग जी,ब्रम्हमाँ एवं अन्य मंदिरों के दर्शन कर आत्मिक लाभ प्राप्त करते हैं एवं अपने को पवित्र करने के लिए पुष्कर झील में स्नान भी करते हैं, ऐसा माना जाता है कि पुष्कर सरोवर में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। पुष्कर आने वाले पर्यटकों के लिए मुख्य आकर्षण चौदहवी सदी में निर्मित भगवान ब्रह्मा का मंदिर है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार थार के रेगिस्तान के ऊपर से उड़ते समय ब्रह्मा जी के हाथ से कमल के तीन फूल गिर गए थे,जिससे तीन झील बनी थी । ब्रह्मा जी ने इसी स्थान पर यज्ञ किया था। यज्ञ भूमि पर ही ब्रह्मा मंदिर बनाया गया था। मेले में जहाँ एक तरफ पशुओं का व्यापार होता है वहीं दुसरी तरफ धार्मिक गतिविधियां भी जोर शोर से आयोजित की जाती है।
पुष्कर मेले की विशेषताएँ
पुष्कर का पशु मेला मरुस्थल के गाँवों के निवासीयों कठोर जीवन में एक नवीन उत्साह का संचार करता है। लोग रंग–बिरंगे परिधानों में सज–धजकर जगह–जगह पर नृत्य गान आदि समारोहों में भाग लेते हैं। मेला रेत के विशाल मैदान में लगाया जाता है। आम मेलों की ही तरह इस मेले में भी दुकानों की लगती है इन दुकानों मेंखाने-पीने के स्टाल,सर्कस,झूले, मदारी के करतब,रंगबिरंगी चूडियां, कपड़े और न जाने क्या-क्या। ऊंट को थार का जहाज कहा जाता है इसीलिये मेले में ऊंट तो हर तरफ देखने को मिलते ही हैं किन्तु अब तो इस मेले में ऊंट के अलावा घोडे,हाथी, गाय,बैल,बकरी एवं अन्य मवेशी भी बेचने के लिए आते हैं। सैलानियों को इन पर सवारी का लुत्फ मिलता है। मेले में लोक संस्कृति व लोक संगीत का शानदार नज़ारा देखने को मिलता है | विदेशी इस मौके पर पारंपरिक भारतीय राजस्थानी खाने के साथ यहां सर्प नृत्य,कालबेलिया नृत्यो तथा अन्य लोक नृत्यो का भी आनंद लेते है.
मेले की शाम का मुख्य आकर्षण यहां आयोजित होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। इनमें पारंपरिक लोक नर्तक और नर्तकियां लोक संगीत की धुन पर जब थिरकते हैं तो एक अलग ही तरह का समां बंध जाता है।घूमर,कालबेलिया,गेर,मांड,काफ़ी घोड़ी और सपेरा नृत्य जैसे लोकनृत्य देख पर्यटक भी झूम उठते हैं। तमाम पर्यटक इन कार्यक्रमों का आनंद लेने से पूर्व सरोवर के घाटों पर जाते हैं। जहां उस समय संध्या आरती और सरोवर में दीपदान का समय होता है। हरे पत्तों को जोड़कर उनके मध्य पुष्प एवं दीप रखकर जल में प्रवाहित कर दिया जाता है। इसे ही दीपदान कहते हैं।जलपर तैरते सैकड़ों दीपक और पानी में टिमटिमाता उनका प्रतिबिंब झिलमिल सितारों जैसा प्रतीत होता है। घाटों पर की गई लाइटिंग इस शाम को भी अद्भुत बना देती है। राजस्थान पर्यटन विकास निगम द्वारा उस समय विशेष रूप से एक पर्यटक गांव स्थापित किया जाता है। वहां सर्वोत्तम तम्बू में ठहरने की अच्छी व्यवस्था होती है। इनमें पर्यटकों के लिए सभी जरूरी सुविधाएं होती हैं। इस पर्यटक ग्राम में ठहरना भी अपने आपमें अलग अनुभव होता है। इस तरह की तमाम विशेषताओं के कारण पुष्कर मेले का भ्रमण पर्यटकों के लिए यादगार बन जाता है
लोकप्रिय स्थानीय खेल कबड्डी की प्रतियोगिता में स्थानीय व विदेशी सैलानियों के बीच मैच होता है,जीतने वाली टीम को पुरस्कार मिलता है। ऐसी ही एक नायाब प्रतियोगिता पगड़ी प्रतियोगिता मुख्य रूप से विदेशी सैलानियों के लिए होती है। पगड़ी प्रतियोगिता में विदेशी सैलानियों को कम से कम समय में अपने सर पर राजस्थान की आन बान और शान की निशानी पगड़ी बांधनी होती है। विदेशी पुरूषो के साथ साथ विदेशी महिलाओ मे भी यह प्रतियोगिता खासे आकर्षंण व कौतुहल का विषय होती है |
कार्तिक स्नान
मेला स्थल से थोड़ी दूरी पर पुष्कर नगरी का माहौल एक तीर्थनगरी सरीखा पवित्र होता है। कार्तिक में स्नान का महत्व हिंदू मान्यताओं में वैसे भी काफ़ी ज़्यादा है। इसलिए यहां साधु भी बडी संख्या में नज़र आते हैं। मेले के आरम्भिक दिनों में जहाँ पशुओं की ख़रीद-फरोख्त पर ज़ोर रहता है,वहीं बाद के दिनों में पूर्णिमा के नजदीक आते-आते धार्मिक गतिविधियों का ज़ोर प्रारम्भ हो जाता है। श्रद्धालुओं के सरोवर में स्नान करने का सिलसिला पूर्णिमा को अपने चरम पर होता है। पुष्कर मेले के दौरान इस नगरी में आस्था और उल्लास का अनोखा संगम देखा जाता है |
राजस्थान के अन्य प्रसिद पशु मेले
नागोर का पशु मेला——यह भारत का दूसरा सबसे बड़ा पशु मेला है, इसका आयोजन जनवरी-फरवरी के महीने में होता है, इस मेले में राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों से आनेवाले लोग भाग लेते हैं | यहां खास कर ऊंट और बैल की खरीददारी होती है | यह मेला ऊंट के बाजार के लिए बहुत ही प्रसिद्ध है. यहां भेड़,बकरी का भी बड़ा बाजार लगता है. यहां पर मटका फोड़ और लंबी मूछों की प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता है,जिसमें देश के कई हिस्सों से लोग भाग लेने आते हैं |
गंगापुर पशु मेला——इस मेले का आयोजन भीलवाडा के समीप में बसे गंगापुर गांव में होता है(यहां गंगा माता का मंदिर है इसीलिये इसे गंगापुर के नाम से जाना जाता है)| यहाँ का पशु मेला स्थानीय ग्रामीणों की जीविका का मुख्य साधन है, इस मेले में प्रति वर्ष देश के विभिन्न हिस्सों से लोग आते हैं और पशुओं की खरीदारी करते हैं |
कोलायत पशु मेला—-इस मेले का आयोजन दिसंबर के महीने में किया जाता है इस मेले को कपिल मुनि मेला के नाम से भी जाना जाता है,क्योंकि यहां पर कपिल मुनि का मंदिर है | कोलायत मेले की रौनक यहां के 52 घाट हैं जिन्हें बहुत सुन्दरता से सजाया जाता है |
झालावाड़ पशु मेला—-झालावाड़ पशु मेले को चंद्रभागा मेले के नाम से भी जाना जाता है | इस मेले का आयोजन कार्तिक महीने में होता, इस मेले का आयोजन झालापाटन में किया जाता है,जो झालावाड़ से6किलोमीटर की दूरी पर है, यहां गाय,भैंस,ऊंट और बैल की खरीददारी की जाती है |
जे. के. गर्ग
सन्दर्भ—विभिन्न पत्र-पत्रिकायें, समाचार पत्र, मेरीडायरी के पन्ने
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