विदिशा क्षेत्रीय-प्रादेषिक वरिष्ठ पत्रकार श्री अषोक मानोरिया द्वारा रचित तथा हाल ही विमोचित ‘‘विदिषा’’ नामक कृति कमोवेष विदिषा का एन्सायक्लोपेडिया ग्रंथ है। पौराणिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक संदर्भ में विदिषा क्षेत्र के गर्वोन्नत अतीत, देष के राजे-महाराजों, शहंषाहों, अंग्रेजों के शासनकाल में विदिषा की शासन व्यवस्था, फिर स्वतंत्रता संग्राम में विदिषा की विषिष्ट भूमिका-महत्ता, स्वतंत्रता पष्चात विदिषा के राजनीतिक तथा सत्ता वर्चस्व की गाथा इसमें समाहित है।
भगवान श्रीराम के श्री चरणों से सम्पन्न श्री चरणतीर्थ धाम साक्षी हैं कि वनवास अवधि में भगवान श्रीराम यहां पधारे थे। उनके शुभागमन से ही विदिषा ऐसा तीर्थ बना कि श्री सोमेष्वर की तीर्थयात्रा का फल तभी मिल सकता है, जब उसके पष्चात विदिषा तीर्थ की यात्रा की जाए। इस कृति में भगवान श्रीराम के उस अनुग्रह-उपकार का भी उल्लेख है, जिसमें उन्होंने अपने सबसे छोटे अनुज शत्रुघ्नजी के सुपुत्र शत्रुघाती को विदिषा का शासक बनाया था। यह क्षेत्र भगवान श्रीराम का कृपा क्षेत्र रहा, तभी तो रामायण के रचयिता महर्षि बाल्मीकि ने इसी क्षेत्र में अपना आश्रम स्थापित किया था। बाल्मीकि रामायण में इसीलिए विदिषा का उल्लेख है। यह क्षेत्र इतना प्राचीन है कि महाभारत और स्कन्दपुराण में भी इसका वर्णन है। महाकवि कालीदास ने तो इसकी महिमा का विषेष बखान किया है।
यह क्षेत्र दो त्रिवेणियों से सम्पन्न है। इनमें से एक त्रिवेणी श्री चरणतीर्थ धाम के समीप वैत्रवती (बेतवा) की दो धाराएं बेस नदी की एक धारा से संगम कर बनी है। दूसरी त्रिवेणी हिन्दू, जैन-बौद्ध धर्मो की त्रिवेणी है। तीर्थंकर भगवान श्री शीतलनाथ के तीन कल्याणकों से सम्पन्न इस क्षेत्र का संत तारण से भी सीधा संबंध रहा है। उदयगिरि की गुफाओं से भी यहां की पुरातन आध्यात्मिक संस्कृति का परिचय मिलता है।
महान सम्राट अषोक का विवाह इसी विदिषा नगरी के एक साहूकार की बेटी से हुआ था। अषोक के सुपुत्र महेन्द्र तथा सुपुत्री संघमित्रा ने बौद्ध धर्म को विष्व व्यापकता प्रदान की। पुरातत्व की दृष्टि से तो इस क्षेत्र का कहीं कोई सानी नहीं। विष्वविख्यात शाल भंजिका विदिषा क्षेत्र की ही निधि है। इसी का चित्र ‘‘विदिषा’’ कृति के प्रथम आवरण पृष्ठ पर प्रकाषित है। ग्यारसपुर, उदयपुर के साथ हेलियोडोरस स्तम्भ (खामबाबा) पुरातात्विक स्थल राष्ट्रीय गर्व-गौरव के विषय हैं। ग्रीक राजदूत के रूप में विद्वान यात्री हेलियोडोरस द्वारा वैष्णव-भागवत धर्म अंगीकार किए जाने की स्मृति में इस स्तंभ का निर्माण हुआ था। इसके समीप ही श्री प्राचीन वासुदेव मंदिर के अवषेष भी गौरवान्वित करने वाले हैं।
रेल सेवा, डाक सेवा, बैंक सेवा, एलोपैथिक चिकित्सा सेवा, शालेय षिक्षा व्यवस्था आदि कब प्रारंभ हुईं, भेलसा से विदिषा कब बना, विदिषा कब-कैसे जिले के रूप में अस्तित्व में आया, शासनिक-प्रषासनिक व्यवस्था की अतीत में क्या स्थिति थी, वर्तमान की स्थिति, कृषि प्रधान विदिषा क्षेत्र की सिंचाई आदि सुविधाओं की कब क्या स्थिति रही, वर्तमान में क्या स्थिति है, ये सब इस कृति में है।
इस कृति में कुछ बड़ी रोचक-रोमांचक जानकारियां भी हैं, यथा यहां कब मद्यनिषेध रहा, यहां का तम्बाकू क्यों प्रसिद्ध था, यहां कब अफीम पोस्ते की खेती होती थी, जैसी जानकारियां।
कुल मिलाकर यह एक अति उपयोगी तथा संग्रहणीय कृति है। एक बार इसे पढ़ने बैठ जाएं तो छोड़ना कठिन होता है। इस कृति की एक और बड़ी विषेषता यह है कि इसमें विभिन्न विषयों पर केन्द्रित आलेख संक्षेप में लिखे गए हैं, परन्तु उनकी महत्ता और सटीकता ‘‘गागर में सागर‘‘ के समान है।
– समीक्षक जगदीष शर्मा
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