सभी सरकारी स्कूलों की लाइब्रेरी में रखवायी जाएगी महर्षि परशुराम से संबंधित पुस्तकें
शिक्षा एवं पंचायतीराज राज्यमंत्राी प्रो. वासुदेव देवनानी ने आज भारतीय शिक्षण मण्डल द्वारा महर्षि परशुराम जयन्ती पर तोपदड़ा स्कूल में आयोजित कार्यक्रम में यह बात कही। उन्होंने कहा कि महर्षि परशुराम शस्त्रा और शास्त्रा के ज्ञाता थे। जब-जब धर्म संकट में आया उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए अद्वितीय योगदान दिया। कोई भी पुराण परशुराम के बिना पूरा नहीं होता। युवा पीढ़ी को धर्म एवं राष्ट्र की रक्षा के लिए परशुराम से यह सीख लेनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि जगत गुरू शंकराचायर्, रामस्नेही सम्प्रदाय के रामदयाल महाराज एवं निम्बार्क पीठ के श्रीजी महाराज से चर्चा के दौरान यह मत सामने आया था कि युवा पीढ़ी को संस्कारों से अवगत कराने के लिए हमें ज्यादा से ज्यादा धर्म गुरूओं को पाठ्यक्रम में जोड़ना चाहिए। राज्य सरकार युवाओं को संस्कारवान बनाने के लिए लगातार प्रयासरत है। पाठ्यक्रम में महापुरूषों, वीरों, वीरांगनाओं तथा धर्म से जुड़े प्रेरक व्यक्तित्वों की जीवनियां जोड़ी जा रही है ताकि हमारे युवा उनसे सीख ले सके।
प्रो. देवनानी ने कहा कि राज्य सरकार ने पिछले तीन सालों में यह प्रयास किया है कि मैकाले की जो शिक्षा पद्धति भारतीय जनमानस पर जबरन थोप दी गई थी। उसे दूर कर भारतीय संस्कारों से युक्त शिक्षा विद्यार्थियों को दी जाए। हम इस उद्देश्य में काफी हद तक सफल भी हुए है। उन्होंने शिक्षकों का आह्वान किया कि वे विद्यार्थियों को संस्कारवान शिक्षा के लिए अपना सहयोग प्रदान करें।
समाजसेवी श्री सुनील दत्त जैन ने कहा कि आज शिक्षा के क्षेत्रा में चरित्रा व राष्ट्र निर्माण की सीख देने वाली शिक्षा की आवश्यकता है ताकि विद्यार्थियों को भारतीय संस्कृति से रूबरू होने का मौका मिले। हम ना सिर्फ सुयोग्य विद्यार्थी बल्कि योग्यतम शिक्षक भी तैयार करें ताकि मैकाले की शिक्षा पद्धति के दोषों को अति शीघ्र दूर किया जा सके। यह प्रयास लगातार जारी रहना चाहिए।
शिक्षाविद् डाॅ. बद्रीप्रसाद पंचोली ने कहा कि भारतीय समाज की विशेषता और ताकत उसकी संस्कृति में है। हमें बलशाली और योग्य होना है तो भारतीय संस्कृति को अपने पाठ्यक्रम में शामिल करना ही होगा। देश की आजादी के पश्चात संस्कृति का संवर्द्धन करने का प्रयास लगातार धीमा पड़ता गया। हमें अपने इतिहास से सीख लेकर आगे बढ़ना चाहिए। कार्यक्रम को अन्य वक्ताओं ने भी संबोधित किया। कार्यक्रम का संचालन श्री रामनिवास गालव ने किया।