देवीशंकर भूतड़ा कर रहे हैं चुनाव लडऩे की तैयारी

देवी शंकर भूतडा
देवी शंकर भूतडा
ब्यावर के पूर्व विधायक देवीशंकर भूतड़ा की आगामी विधानसभा चुनाव लडऩे की प्रबल इच्छा है। इसका संकेत मिलता है फेसबुक पर उनकी ओर से की गई पोस्ट, जिसमें वे बताते हैं कि उन्होंने अपने कार्यकाल में कितना कार्य करवाया, चाहें तो उसकी तुलना पिछले आठ साल से कर लीजिए।
आइये, जरा उनकी पोस्ट पर नजर डाल लें:-
प्रिय मित्रों,
लगभग आठ वर्ष पूर्व मुझे ब्यावर विधायक के रूप में कार्य करने का सौभाग्य मिला, तो मैने प्रयास किया कि जन-जन की आकाक्षाओं को पूर्ण करूं। क्षेत्र की आधारभूत बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा, चिकित्सा व सफाई जैसी समस्याओं का समाधान करते हुए ब्यावर की बहुत पुरानी मांग जल व जिले के लिये ठोस कार्य कर परिणाम ला सकूं। साथ ही मगरे के विकास हेतु विशेष दर्जा व पर्यटन की दृष्टि से राजस्थान के नक्शे पर ला सकूं। ताकि मगरे का तीव्र गति से विकास हो सके। मैने समस्याओं के समाधान व विकास के लिये हर सम्भव प्रयास करने के साथ ही ब्यावर विधानसभा क्षेत्र को सिंचाई, पर्यटन व सोन्दर्यीकरण की दृष्टि से भी उभारने का प्रयास किया।
मित्रों पिछले 8 वर्षों से ब्यावर के जो हालात हैं, उससे ब्यावर का आमजन परिचित है। उपरोक्त हालतों पर जब हम यदा कदा बोलते हैं तो अनेक युवा बंधुजन बोलते आप भी तो रहे, आप ने क्या किया, तब मुझे लगता है कि मैने उस समय जो किया या कर सका उस समय कि मीडिया कवरेज द्वारा मेरे पास उपलब्ध सामग्री है, उसे मैं आप को शेयर करूं, ताकि आप ठीक से वे पांच वर्ष व अभी के 8 वर्ष से अधिक के कार्यकाल का आंकलन कर अपनी राय व्यक्त कर सकें।
भूतड़ा की इस पोस्ट से साफ है कि वे मौजूदा भाजपा विधायक शंकर सिंह रावत के कार्यकाल को नकारा बता रहे हैं। इसके विपरीत अपने कार्यकाल को बेहतर मानते हैं। यानि कि वे जनता के संज्ञान में अपनी उपलब्धियां ला कर भाजपा हाईकमान पर दबाव बनाना चाहते हैं कि इस बार उन्हें मौका दिया जाए।
यहां आपको बता दें कि ब्यावर की राजनीति बड़ी उलझी हुई है। गांवों में रावत मतदाताओं का बाहुल्य है, इसके अतिरिक्त शहर के भाजपा मानसिकता के वोट भी मिलते हैं, इस कारण भाजपा का रावत प्रत्याशी आसानी से जीत जाता है। हालांकि पेच ये है कि शहर का आम मतदाता रावत प्रत्याशी को पसंद नहीं करता, मगर उसकी ताकत कम होती है। इसके अतिरिक्त अमूमन त्रिकोणीय मुकाबले होते हैं, इस कारण रावत प्रत्याशी भारी पड़ जाता है।
बात अगर शंकर सिंह रावत की करें तो उन्होंने ब्यावर को जिला बनवाने के लिए खूब मशक्कत की, आंदोलन तक किया, मगर वह हाईकमान को रास नहीं आया। इस कारण चुप हो कर बैठ गए। उन्हें डर रहा कि अगर हाईकमान नाराज हो गया तो तीसरी बार टिकट नहीं मिल पाएगा।
बताते हैं कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे उनसे प्रसन्न नहीं हैं। इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि लगातार दो बार जीतने के बाद भी उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया। संसदीय सचिव बनने की बारी आई तो भी पहली बार जीते पुष्कर विधायक सुरेश रावत को मौका मिला। देखते हैं आगामी विधानसभा चुनाव भाजपा किस जातीय समीकरण के तहत प्रत्याशी तय करती है। वैसे रावत के टिकट पर संकट तो माना जा रहा है। कदाचित भूतड़ा इसी वजह से उम्मीद पाले हुए हों।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

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