महाराणा प्रताप के विद्रोही भाई शक्तिसिंह द्वारा राणा प्रताप की सुरक्षा
जीवन में पहली बार दोनों भाई प्रेम के साथ गले मिले। इस बीच चेतक ज़मीन पर गिर पड़ा और जब प्रताप उसकी काठी को खोलकर अपने भाई द्वारा प्रस्तुत घोड़े पर रख रहे थे,चेतक ने प्राण त्याग दिए। बाद में उस स्थान पर एक स्मारक बनाया गया जो आज तक उस स्थान को इंगित करता है,जहाँ पर स्वामी भक्त चेतक मरा था। प्रताप को विदा करके शक्तिसिंह खुरासानी सैनिक के घोड़े पर सवार होकर वापस लौट गये। सलीम को उस पर कुछ सन्देह पैदा हुआ। जब शक्तिसिंह ने कहा कि प्रताप ने न केवल पीछा करने वाले दोनों मुग़ल सैनिकों को मार डाला अपितु मेरा घोड़ा भी छीन लिया। इसलिए मुझे खुरासानी सैनिक के घोड़े पर सवार होकर आना पड़ा। सलीम ने वचन दिया कि अगर तुम सत्य बात कह दोगे तो मैं तुम्हें क्षमा कर दूँगा। तब शक्तिसिंह ने कहा, “मेरे भाई के कन्धों परमेवाड़राज्य का बोझा है। इस संकट के समय उसकी सहायता किए बिना मैं कैसे रह सकता था।” सलीम ने अपना वचन निभाया,परन्तु सलीम ने शक्तिसिंह को अपनी सेवा से मुक्त कर दिया।
संकलनकर्ता डा. जे. के गर्ग
सन्दर्भ— विभिन्न पत्रिकाएँ, एम राजीव लोचन- इतिहासकार, पंजाब विश्वविद्यालय, सरकार जदुनाथ (1994).A History of Jaipur: c. 1503 – 1938,आइराना भवन सिंह (2004). महाराना प्रताप — डायमंड पोकेट बुक्स. pp.28, आदि
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