पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी का अहमदाबाद दंगों पर तत्कालीन मुख्य मंत्री को कर्तव्यबोध उदबोधन कि ‘राजधर्म का पालन में विफलता’ आज के परिपेक्ष में पुनरावलोकन व इतिहास के परिपेक्ष में झाँकने को विवश करता है। इतिहास साक्षी है कि कॉंग्रेस की स्थापना के उपरांत हिन्दू व मुस्लिम नेताओं ने संयुक्त रूप से , साम्प्रदायिक भावनाओं से परे,देश को अंग्रेज़ों के शासन से मुक्ति व स्वतन्त्रता प्राप्ति की दिशा में संघर्ष किया लेकिन इस एकता को अंग्रेज़ों ने सन् १९०५ में मुस्लिम लीग की स्थापना कर तोड़ने का प्रारंभ किया फिर भी कांग्रेस सभी देशवासियों को साथ लेकर चलती रही। सन् १९२५ में राष्ट्रीय सवंय सेवक संघ की स्थापना के उपरांत कुछ वर्ष साथ साथ रहते हुये हिन्दुत्व एंजनडे के कारण मतभेद उत्पन्न हुआ और दोनों विचारधाराओं ने अलग अलग रास्ते अपनाये। परिणाम स्वरूप मुस्लिम लीग की कट्टरता के कारण देश का बँटवारा हुआ परन्तु तत्कालीन साम्प्रदायिक दंगों के कारण दोंनो ओर से अल्प संखयक लोगों का सीमा के आरपार आना जाना हुआ एंव उस समय के घटनाक्रम ने भीषण स्वरूप व हिंसात्मक ने पारस्परिक अविश्वास को स्थान दिया।
लोकतंत्र में बहुमत से निर्वाचित सरकार को अल्प संख्यक को संरक्षण प्रदान कर राज धर्म का पालन किया जो वर्ग विशेष को ख़ुश किये जाने या वोट बैंक के रूप में उपयोग किये जाने को लेकर आलोचना का कारण बना , यदपि इसमें कुछ सीमा तक सत्यता भी रही जब कि लक्षय पिछड़े वर्ग व समुदाय विशेष को मुख्य धारा से जोड़ना था ।
गत विधान सभा के चुनावों में भाजपा ने हिन्दुत्व को प्रमुख एंजेनडा बनाया , इसलिये ही उतर प्रदेश में मुस्लिम वर्ग को एक भी टिकट नही दिया व चुनावी रणनीति के तहत हिंदु मतों का धुरवीकरण कराया गया व भाषणों में क़ब्रिस्तान का ज़िक्र किया गया । उस क्रम में ही हिंदुवादी योगी आदित्य नाथ को मुख्य मंत्री पद सोपा गया है । अब देखना है कि सरकार राज धर्म का पालन कितना कर पाती है ।
सत्य किशोर सकसेंना , एडवोकेट, अजमेर /जयपुर 9414003192