ढ़ेर
कचरे का,
पास खड़ी जमात
कुत्तों की.
साथ ही
नजर आती है
एक दुबली सी
काया,
जिसे
तलाश है
जूठन की.
कुत्ता
निरीह जानवर है.
असहाय, मूक.
जरूरत पता है
पर
बोल कर कह
नहीं सकता.
हम सभ्य लोगों को
पता है.
जानवर है वो,
इसलिए
छीनाझपटी के बाद भी
बची रह जाती है
उसकी शर्म.
पर
हालात बदतर हैं.
इन्हीं कुत्तों के साथ
कचरे को
बिखेरने में लगे
बदहवास बच्चों के.
हमें बोल के
कहते हैं.
खाना देखकर
छटपटाते हैं,
मगर
हम बहरे हैं.
और
ओर फिर
भूख के आगे
खो जाती है
शर्म.
उर्वशी