क़लम उठ जाती है

नटवर विद्यार्थी
नटवर विद्यार्थी
दिलों से मैल की ‘काई ‘
हटाने की ज़रूरत है ।
लगी जो आग बस्ती में,
बुझाने की जरूरत है ।

दिवाली, ईद या होली ,
जहाँ तक़रार बनती है ।
फ़क़त हठ की दीवारों को,
ढहाने की जरूरत है ।

वतन को गालियाँ देकर,
जो गाए गीत औरों के ।
सबक़ , ऐसे अधर्मी को ,
सिखाने की जरूरत है ।

सशंकित हर गली-आँगन ,
अँधेरा ही अँधेरा है ।
वहाँ विश्वास का दीपक ,
जलाने की ज़रूरत है ।
– नटवर पारीक,डीडवाना

error: Content is protected !!