ज्ञातव्य है कि इससे पूर्व काफी लंबे समय से तिवाड़ी सरकार, विशेष रूप से मुख्यमंत्री राजे के खिलाफ बोलते रहे हैं। इस पर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अशोक परनामी ने राष्ट्रीय अनुशासन समिति को शिकायत की थी, जिस पर समिति के अध्यक्ष गणेशीलाल ने तिवाड़ी को नोटिस दे कर दस दिन में जवाब मांगा। नोटिस में साफ तौर कहा गया है कि वे पिछले दो साल से लगातार पार्टी विरोधी गतिविधियों एवं पार्टी के विरुद्ध बयानबाजी करने में संलग्न हैं। पार्टी द्वारा आयोजित बैठकों में वे उपस्थित नहीं हो रहे और विपक्षी दलों के साथ मिलकर मंच साझा कर रहे हैं। इसके साथ ही नोटिस में यह भी बताया गया है कि वे समानांतर राजनीतिक दल का गठन करने के प्रयास में जुटे हैं। नोटिस की भाषा से ही स्पष्ट था पार्टी का रुख अब उनके प्रति क्या रहने वाला है। तिवाड़ी भी ये जानते थे और उन्होंने बहुत सोच समझ कर अपनी मुहिम को जारी रखा। नोटिस पर प्रतिक्रियास्वरूप तिवाड़ी ने जो पलटवार किया, उसी से ही लग गया था कि वे आरपार की लड़ाई के मूड में हैं। उन्होंने कहा कि प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी जिस दीनदयाल वाहिनी के गठन को लेकर केंद्रीय नेतृत्व को मेरी अनुशासनहीनता की शिकायतें कर रहे हैं, उसका गठन 29 साल पहले सीकर में उस समय हो गया था, जब मैं विधायक था और परनामी राजनीति में कुछ नहीं थे। वे उस समय सिर्फ अगरबत्ती बेचते थे। उन्होंने कहा कि वे न तो डरेंगे और न ही झुकेंगे। भ्रष्ट सरकार के खिलाफ लड़ाई जारी रखेंगे। अपनी ही पार्टी की सरकार को भ्रष्ट करार देना कोई मामूली बात नहीं है।
हालांकि इस बीच वसुंधरा के प्रति वफादारी दिखाने वाले कुछ नेताओं ने तिवाड़ी पर आरोपों की झड़ी लगा दी, मगर इससे वे और अधिक मुखर हो गए।
अब जबकि वे खुल कर आंदोलन करने पर उतारु हो ही गए हैं तो लगता नहीं कि बीच का रास्ता निकलेगा। अगर उनको पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया जाता है तो जाहिर तौर पर प्रदेश भाजपा की राजनीति के समीकरणों में बदलाव आएगा। इसके अतिरिक्त यह भी साफ हो जाएगा कि कौन उनके साथ है और कौन पार्टी के साथ। बाकी एक बात जरूर है कि आज जब कि पार्टी अच्छी स्थिति में है, उसके बाद भी तिवाड़ी ने जो दुस्साहस दिखाया है तो वह गौर करने लायक है।
-तेजवानी गिरधर
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