राजस्थान विधानसभा के पिछले सत्र में पेश किया गए विवादित ‘काला कानून’ को आज विधानसभा में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे द्वारा वापस लिए जाने की घोषणा की गई है। ऐसे में उस विवादित विधेयक को लेकर राजस्थान सरकार बैकफुट पर आ गई है, जिसके तहत राज्य सरकार के किसी भी लोकसेवक एवं नौकरशाहों के खिलाफ किसी भी तरह का मुकदमा सरकार की मंजूरी के बिना दर्ज नहीं किए जाने का प्रावधान किए जाने की बात कही गई थी।
राजस्थान विधानसभा में चल रहे बजट सत्र में सोमवार को अपने बजट को लेकर जवाब पेश कर रही मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने विवादित विधेयक को वापस लिए जाने की घोषणा की है। मुख्यमंत्री ने कहा कि जो बिल लागू ही नहीं हुआ, कांग्रेस उस पर बिना बात के हंगामा कर रही है। क्योंकि जिस आर्डिनेंस को पेश किए जाने के बाद हमने इसे लेप्स होने दिया। ऐसे में जब यह कानून ही नहीं बना तो काले कानून की बात करना बेमानी है।
आपको बता दें कि यह विवादित बिल राजस्थान विधानसभा के पिछले सत्र में पेश किया गया था, जिसके तहत राज्य सरकार किसी भी लोकसेवक एवं नौकरशाहों के खिलाफ किसी तरह का मुकदमा सरकार की मंजूरी के बिना दर्ज नहीं किए जाने का प्रावधान करना चाहती थीं। चलते किसी भी सरकारी कर्मचारी के खिलाफ मामला दर्ज कराने से पहले सरकार से इसकी इजाजत लेने की बात कही गई थी।
विधानसभा में पेश किए गए उस विधेयक के मुताबिक, नौकरशाहों के खिलाफ शिकायत या एफआईआर दर्ज कराने के लिए पहले सरकार की परमिशन लेनी होगी। वहीं शिकायत दर्ज होने के बाद सरकारी कर्मचारी के खिलाफ 180 दिन में फैसला लेगी। इस विधेयक को काला कानून करार देकर विपक्ष ने कड़ा विरोध किया, जिसके बाद इसे प्रवर समिति को सौंप दिया गया था।
राजस्थान विधानसभा में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने इस विधेयक को वापस लिए जाने की घोषणा करते हुए कहा कि, ‘पहले ही हमने अध्यादेश को लैप्स करवा दिया और बिल को सिलेक्ट कमेटी में भेज दिया। ऐसे में जब कोई कानून बना ही नहीं तो फिर इस पर बात किया जाना भी बेमानी है। अगर बात इसे वापस लिए जाने की है तो राज्य सरकार इस कानून को वापस लेती है और हम इसे सिलेक्ट कमेटी से भी वापस लेंगे।