संत श्री एकनाथ षष्ठी आज

आज यानी फाल्गुन कृष्ण पक्ष षष्ठी को संत एकनाथ का समाधि दिवस उनकी षष्ठी के रूप में मनाया जाता है।
संत एकनाथ के जन्म का समय 1533 ई. से 1599 ई. के बीच का माना जाता है । एकनाथ महाराष्ट्र के प्रसिद्ध सन्तों में बहुत ख्याति प्राप्त हैं। महाराष्ट्रीय भक्तों में नामदेव के पश्चात् दूसरा नाम एकनाथ का ही आता है। ये वर्ण से ब्राह्मण जाति के थे। इन्होंने जातिप्रथा के विरुद्ध आवाज़ उठाई तथा अनुपम साहस के कारण कष्ट भी सहे। इनकी प्रसिद्धि भागवत पुराण के मराठी कविता में अनुवाद के कारण हुई। दार्शनिक दृष्टि से ये अद्धैतवादी थे।
मूल नक्षत्र में पैदा होने के कारण ये भी तुलसीदास की भाँति बचपन में ही अपने माता-पिता को खो चुके थे। दादा ने इनका पालन-पोषण किया था। भक्ति का भाव-उदय इनके अन्दर बचपन में हो गया था। बहुधा ये बाहर से किसी पत्थर को उठा लाते और देवता कहकर उसके सामने सन्तों के चरित्र और पुराणों का पाठ करते। बारह वर्ष की उम्र में इन्होंने देवगढ़ के सन्त जनार्दन से दीक्षा ली और छह वर्ष तक गुरु के पास रहकर अध्ययन करते रहे। फिर तीर्थाटन के लिए निकले।
काशी में रहकर इन्होंने हिन्दी भाषा सीखी। अपनी तीर्थयात्रा से लौटने के पश्चात् गुरु की आज्ञा से गृहस्थाश्रम में प्रवेश किया। नामदेव और तुकाराम की भाँति एकनाथ ने भी गृहस्थाश्रम को कभी आध्यात्मिक मार्ग की बाधा नहीं समझा। उनमें प्रवृत्ति और निवृत्ति मार्ग का अपूर्व समन्वय था। इन्होंने अपने समय में छुआछूत दूर करने का यत्न किया। एकनाथ अपने जीवन का केवल एक ही उद्देश्य मानते थे कि सभी के अन्दर सर्व-समन्वय की भावना विकसित हो। इस प्रकार उन्होंने समाज में से जातिवाद तथा छुआछूत को दूर करने का भरसक प्रयास किया।
एकनाथ उच्चकोटि के कवि भी थे। इन्होंने अनेक ग्रन्थों की रचना की है, जिनमें प्रमुख हैं-‘चतु: श्लोकी भागवत’, ‘भावार्थ रामायण’, ‘रुक्मिणी स्वयंवर’, ‘पौराणिक आख्यान’, ‘संत चरित्र’ और ‘आनन्द लहरी’ आदि। एकनाथ ने ‘ज्ञानेश्वरी’ की भिन्न-भिन्न प्रतियों के आधार पर इस ग्रन्थ का प्रमाणिक रूप भी निर्धारित किया। इन्होंने भागवत पुराण का मराठी भाषा में अनुवाद किया, जिसके कुछ भाग पंढरपुर के मन्दिर में संकीर्तन के समय गाये जाते हैं। इन्होंने ‘हरिपद’ नामक छब्बीस अंभंगों का एक संग्रह भी रचा।
ऐसा माना जाता है कि संत एकनाथ ने गोदावरी के जल में आज के दिन यानी फाल्गुन कृष्ण पक्ष की षष्ठी के दिन समाधि लेकर अपना जीवनांत किया था।

वे एक महान संत होने के साथ-साथ कवि भी थे। उनकी रचनाओं में श्रीमद्भागवत एकादश स्कंध की मराठी-टीका, रुक्मिणी स्वयंवर, भावार्थ रामायण आदि प्रमुख हैं। संत एकनाथ ने जिस दिन समाधि ली, वह दिन एकनाथ षष्‍ठी के नाम से मनाया जाता है। इस दिन पैठण में उनका समाधि उत्सव मनाया जाता है।

संत एकनाथजी के दो रोचक प्रसंग-
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प्रसंग 1 : उपकार और क्षमाशीलता
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संत एकनाथ में अनेक सद्गुण भरे हुए थे। उनकी क्षमा तो अद्भुत थी। एक दिन वे नदी से स्नान कर अपने निवास स्थान की ओर लौट रहे थे कि रास्ते में एक बड़े पेड़ से किसी ने उन पर कुल्ला कर दिया।

एकनाथ ने ऊपर देखा तो पाया कि एक आदमी ने उन पर कुल्ला कर दिया था। वे एक शब्द नहीं बोले और सीधे नदी पर दोबारा गए, फिर स्नान किया। उस पेड़ के नीचे से वे लौटे तो उस आदमी ने फिर उन पर कुल्ला कर दिया। एकनाथ बार-बार स्नान कर उस पेड़ के नीचे से गुजरते और वह बार-बार उन पर कुल्ला कर देता।

इस तरह से एक बार नहीं, दो बार नहीं, संत एकनाथ ने 108 बार स्नान किया और उस पेड़ के नीचे से गुजरे और वह दुष्ट भी अपनी दुष्टता का नमूना पेश करता रहा। एकनाथ अपने धैर्य और क्षमा पर अटल रहे।

उन्होंने एक बार भी उस व्यक्ति से कुछ नहीं कहा। अंत में वह दुष्ट पसीज गया और महात्मा के चरणों में झुककर बोला- महाराज मेरी दुष्टता को माफ कर दो। मेरे जैसे पापी के लिए नरक में भी स्थान नहीं है। मैंने आपको परेशान करने के लिए खूब तंग किया, पर आपका धीरज नहीं डिगा। मुझे क्षमा कर दें।

महात्मा एकनाथ ने उसे ढाढस देते हुए कहा- कोई चिंता की बात नहीं। तुमने मुझ पर मेहरबानी की कि आज मुझे 108 बार स्नान करने का तो सौभाग्य मिला। कितना उपकार है तुम्हारा मेरे ऊपर! संत के कथन से वह दुष्ट युवक पानी-पानी हो गया।

प्रसंग 2 : परमेश्वर का गुलाम बनो ======================
संत एकनाथजी के पास एक व्यक्ति आया और बोला, नाथ! आपका जीवन कितना मधुर है। हमें तो शांति एक क्षण भी प्राप्त नहीं होती। कृपया मार्गदर्शन करें।

तू तो अब आठ ही दिनों का मेहमान है, अतः पहले की ही भांति अपना जीवन व्यतीत कर। सुनते ही वह व्यक्ति उदास हो गया।

घर में वह पत्नी से जाकर बोला, मैंने तुम्हें कई बार नाहक ही कष्ट दिया है। मुझे क्षमा करो। फिर बच्चों से बोला, बच्चों, मैंने तुम्हें कई बार पीटा है, मुझे उसके लिए माफ करो। जिन लोगों से उसने दुर्व्यवहार किया था, सबसे माफी मांगी। इस तरह आठ दिन व्यतीत हो गए और नौवें दिन वह एकनाथजी के पास पहुंचा और बोला, नाथ, मेरी अंतिम घड़ी के लिए कितना समय शेष है?

तेरी अंतिम घड़ी तो परमेश्वर ही बता सकता है, किंतु यह आठ दिन तेरे कैसे व्यतीत हुए? भोग-विलास और आनंद तो किया ही होगा? क्या बताऊं नाथ, मुझे इन आठ दिनों में मृत्यु के अलावा और कोई चीज दिखाई नहीं दे रही थी। इसीलिए मुझे अपने द्वारा किए गए सारे दुष्कर्म स्मरण हो आए और उसके पश्चाताप में ही यह अवधि बीत गई।

मित्र, जिस बात को ध्यान में रखकर तूने यह आठ दिन बिताए हैं, हम साधु लोग इसी को सामने रखकर सारे काम किया करते हैं। यह देह क्षणभंगुर है, इसे मिट्टी में मिलना ही है। इसका गुलाम होने की अपेक्षा परमेश्वर का गुलाम बनो। सबके साथ समान भाव रखने में ही जीवन की सार्थकता है।

राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9611312076, 7976009175

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