राष्ट्रहित में कर्तव्यभाव ही योग – डाॅ. स्वतन्त्र शर्मा

व्यक्ति की चेतना का विस्तार उसका परिवार होती है तथा अनेक परिवारों की चेतना सम्मिलित होकर समाज का निर्माण करती है। ठीक इसी प्रकार अनेक समाजों से मिलकर राष्ट्र निर्मित होता है। इस रूप में व्यक्ति की चेतना राष्ट्र की चेतना तक विस्तारित होती है। विवेकानन्द केन्द्र व्यक्तिगत हित का राष्ट्रहित में त्याग करते हुए राष्ट्र के प्रति कर्तव्यभाव के जागरण को ही योग कहता है। योग द्वारा मनुष्य का निर्माण होता है तथा इससे राष्ट्रनिर्माण की संकल्पना विकसित होती है। व्यक्तिगत चेतना के सामूहिक विस्तारीकरण को ही वेदों में एकोहम् बहुस्यामः कहा गया है। उक्त विचार विवेकानन्द केन्द्र के प्रान्त प्रशिक्षण प्रमुख डाॅ0 स्वतन्त्र शर्मा ने पंचशील नगर स्थित चाणक्य स्मारक पर संचालित किए जा रहे योग सत्र में व्यक्त किए।
योग सत्र समन्वयक डाॅ. अनिता खुराना ने बताया कि आज सूर्यनमस्कार का समूह अभ्यास कराते हुए सूर्यनमस्कार की बारीकियों को समझाया गया तथा अग्निसार क्रिया के लाभों की चर्चा की गई। योग सत्र में विवेकानन्द केन्द्र के युवा प्रमुख अंकुर प्रजापति तथा वर्ग योग शिक्षक लक्ष्मीचंद मीणा ने योगाभ्यास कराया। निधि शर्मा, कांत किशोर शर्मा, शशि जैन, नरेन्द्र सिंह आदि का सहयोग रहा।

भारत भार्गव
प्रचार प्रमुख
विवेकानंद केंद्र कन्याकुमारी
शाखा अजमेर

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