नटवर विद्यार्थीजीवन की खुशी हमारी दशा पर नहीं अपितु हमारी मनोदशा पर निर्भर करती है । मनोदशा यानि मन की प्रवृति । जैसी हमारी मन की प्रवृति होगी वैसी ही हमारी मनोदशा होगी । किसी भी घटना , दुर्घटना या बात को सहज में लो तो जिंदगी चलती रहेगी और उसे पकड़कर बैठ जाओ तो जिंदगी थम जाएगी । “सब दिन होत न एक समान” धारणा लेकर चलते रहने वाले सदैव प्रसन्न रहते हैं और परिस्थितियों से हार जाने वाले अवसाद में चले जाते है ।एक मजदूर दिनभर मेहनत – मज़दूरी करके रात को आराम की नींद लेता है , दूसरी तऱफ अत्यधिक पढ़ – लिखकर और अच्छी नौकरी प्राप्त करने वाले को भी चिंताग्रस्त देखा है । दुनियाँ में ऐसी कोई औषधि नहीं है जो हमें प्रसन्नता दे सके । प्रसन्न रहने के लिए हमें अपने मन को मज़बूत रखना होगा , थोड़े में भी ख़ुशी खोजनी होगी । किसी ने सच कहा है –
“जरूरतें तो फकीरों की भी पूरी हो जाती है लेकिन शौक़ तो बादशाहों के भी पूरे नहीं होते ।”