” आक्रोश ” दो रूपों में सामने आता है – रचनात्मक और विध्वंसात्मक । रचनात्मक आक्रोश जनहित का भाव लिए होता है , इसमें राष्ट्रीय सम्पति और जन- धन की हानि की कोई गुंजाइश नहीं होती । विध्वंसात्मक आक्रोश हिंसा और तोड़- फोड़ का भाव लिए होता है फलस्वरूप इसकी सफलता पर भी प्रश्न चिह्न लग जाता है । इस प्रकार के आक्रोश को दुर्बल आक्रोश की संज्ञा दी जा सकती है । किसी विद्वान ने एक जगह लिखा है ” रचनात्मक आक्रोश के मार्गदर्शक आचार्य होते हैं और विध्वंसात्मक आक्रोश के मार्गदर्शक राजनीतिज्ञ होते है ” ।
अरस्तु ने भी आक्रोश को लेकर अपनी भावनाएँ व्यक्त की है – ” कोई भी आक्रोशित हो सकता है , यह आसान है लेकिन सही व्यक्ति से ,सही सीमा में , सही समय पर और सही उद्देश्य के साथ सही तरीके से आक्रोशित होना सभी के बस की बात नहीं है और यह आसान भी नहीं है ।
– नटवर पारीक