*विचार – प्रवाह*

नटवर विद्यार्थी
“झुनझुना” और “लॉलीपॉप” दोनों ही रोते हुए छोटे बच्चों को मनाने या चुप कराने की चीजें हैं । लॉलीपॉप चीनी की चूसने की डंडीदार कैंडी है और झुनझुना भी एक डंडीदार खिलौना है । दोनों का ही काम लालच देकर बच्चों को खुश कराना है । अक्सर यह काम भारतीय माताएँ करती हैं जिसमे उनका कोई स्वार्थ नहीं होता है । भला एक माँ अपने बच्चे को रोता हुआ कैसे देख सकती है ?
आज झुनझुना और लॉलीपॉप भारतीय नेताओं के हत्थे चढ़ गए है । बेचारी भोली जनता पर इन दोनों का ही प्रयोग इस चालबाजी से कर रहे हैं कि एक बार तो वो चुप हो जाती है , बाद में भले ही पाँच साल तक रोती रहे । सचमुच भारतीय राजनीति में मतदाताओं को रिझाने के लिए एक कारगर हथियार के रूप में झुनझुने और लॉलीपॉप का एक रणनीति के तहत शानदार उपयोग हो रहा है ।
एक बात और है जिस दल को लगता है कि मेरी सत्ता में आने की उम्मीद कम है वो इनके प्रयोग के हथकंडे ज्यादा अपनाता है । इसके पीछे उस दल की मंशा अन्य दलों के समीकरण बिगाड़ने की होती है ।
आज के राजनीतिज्ञों को न तो देश की चिंता है और न ही देश की अर्थव्यवस्था की । किस झुनझुने या लॉलीपॉप से कितना राजकोषीय घाटा होगा अथवा किस वर्ग पर करों की मार पड़ेगी , उन्हें कोई लेना- देना नहीं होता । स्वतन्त्र और निष्पक्ष चुनावों पर यह सीधा कुठाराघात है । लोक – कल्याण का झूठा सहारा या बहाना लेकर जनता को ठगने के इस तरीके की जितनी भर्त्सना की जाए उतनी ही कम है । हाँ , कुछ लॉलीपॉप अथवा झुनझुने देश व ग़रीब के हित में होते है जिन्हें सर्वत्र सराहा जाता है और सराहा भी जाना चाहिए ।लोकतंत्र में जनता का दिल जीतने के लिए शार्ट कट अपनाना कई बार देश के लिए भी भारी पड़ जाता है । किसी एक अथवा किसी वर्ग विशेष को खुश करने के लिए सारी व्यवस्थाओं को चौपट करने का हक किसी को नहीं दिया जा सकता । किसी ने सच कहा है ” फ़रेब के सहारे सफ़र पूरा नहीं किया जा सकता ” ।

– नटवर पारीक

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