आजकल श्वान
भौंकते हैं
काटते नहीं हैं
बस सूंघते हैं
चाटते नहीं हैं ।
विषय बोध का है
गहरे शोध का है ।
समय के साथ परिवर्तन
लाज़मी है
पर इसकी जड़ में
आदमी है ।
किसी को काटकर या चाटकर
कोई श्वान मर गया होगा
इसीलिए हर श्वान
शायद डर गया होगा ।
– नटवर पारीक