इसी दिन विद्या एवम् बुद्धि की देवी माता सरस्वती का जन्म हुआ था। इसलिये बसंत पंचमी के दिन माँ सरस्वती की पूजा अर्चना करके उनसे जीवन में विद्या, बुद्धि, कला एवं ज्ञान प्राप्त का वरदान मांगा जाता है । इस दिन लोगों पीले रंग के कपड़े पहनते और पीले फूलों से देवी सरस्वती की पूजा करते हैं,पतगं बाजी करते हैं और पीले रंग के चावल का सेवन करते है |
सृष्टि रचियता ब्रह्मा जी ने जीवो और मनुष्यों की रचना की थी , ब्रह्मा जी सृष्टि की रचना करके जब उसे निहारने लगे तो ब्रह्मा जी संसार में चारों ओर सुनसान निर्जन ही दिखाई दिया और उनको वहां का वातावरण बिलकुल शांत लगा जैसे किसी के पास कोइ वाणी ही ना हो | यह सब करने के बाद भी ब्रह्मा जी मायूस , उदास और संतुष्ट नहीं थे | तब ब्रह्मा जी भगवान विष्णु जी से आज्ञा लेकर अपने कमंडल से पृथ्वी पर जल छिडका , कमंडल से धरती पर गिरने वाले जल से पृथ्वी पर कंपन होने लगता है और एक अद्भुत शक्ति के रूप में चतुर्भुजी स्त्री प्रकट हुयी उस देवी के एक हाथ में वीणा और दुसरे हाथ में वर मुद्रा थी बाकी अन्य हाथो में पुस्तक और माला थी | ब्रह्मा जी उस स्त्री से वीणा बजाने का अनुरोध किया , देवी के वीणा बजाने के साथ ही संसार के सभी जीव-जंतुओ को वाणी प्राप्त को गयी | उसी क्षण ब्रम्हाजी ने उस स्त्री को “सरस्वती” कहा और उनको वाणी के साथ-साथ विद्या और बुद्धि भी दी | देवी सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है । मान्यताओं के मुताबिक भगवान राम वसंत पंचमी के दिन शबरी के आश्रम पर आये थे और शबरी के झूटे बैर खाये थे |
प्रस्तुति करण —–डा. जे. के. गर्ग