ओम माथुर/ मन विचलित और उदास है। यकीन नहीं हो रहा कि श्री पूर्णाशंकर दशोरा अब इस दुनिया में नहीं रहे। महज एक महीने में पहले उनकी बेटी संगीता दशोरा और फिर पत्नी हेमलता दशोरा दुनिया छोड़ गए और अब वो खुद। मेरे जैसे सैंकड़ों लोगों के लिए ये व्यक्तिगत एवं पारिवारिक क्षति है। दशोजी का परिवार स्नेह बरसाने और संबंधों को निभाने की मिसाल था। जो एक बार उनके संपर्क में आ गया, वह जीवन भर उनका होकर रह गया। कोरोना किस तरह कहर बरपा सकता है, यह दशोराजी के परिवार पर हुए व्रजपात से पता चलता है।
दशोराजी राजनीति में थे। लेकिन नेता कभी नहीं बने। क्योंकि उनमें राजनीतिज्ञों जैसी मक्कारी,धूर्तता और बेईमानी नहीं थी। वो रेवेन्यू के नामी वकील रहे। लेकिन सुर्खियों से हमेशा दूर रहते थे। वे ऐसे नेता थे, जिन्होंने राजनीति में दुश्मन नहीं,दोस्त बनाए। जो राजनीतिक कारणों से उनका विरोधी भी हुआ,वो भी उनके व्यक्तित्व के आगे नतमस्तक रहा। उन्होंने कभी अपनी पार्टी के सत्ता में रहते हुए इसका लाभ नहीं उठाया।
दशोराजी भारतीय जनता पार्टी के शहर अध्यक्ष सहित पार्टी में कई पदों पर रहे,लेकिन कभी भी उनके ऊपर कोई आरोप नहीं लगा। सभी दलों के नेताओं से उनके मधुर संबंध रहे। बीजेपी ही नहीं,कांग्रेस के नेता भी उनका उतना ही सम्मान करते हैं। स्नेही और आत्मीय इतने कि जो एक बार उनसे मिला,हमेशा के लिए उनका हो गया। दशोराजी से जिसके भी संबंध रहे,वो हमेशा पारिवारिक रहे। उन्होंने कभी राजनीतिक या अन्य स्वार्थ के लिए किसी से रिश्ता बनाया ही नहीं। और जिससे एक बार रिश्ता बनाया, उसे शिद्दत से निभाना उनकी आदत रहा। स्वभाव व व्यक्तित्व ऐसा कि उनके दोस्तों की फेहरिस्त में उम्र की सीमा नहीं रही। उम्र में उनसे छोटे अनेक लोग उनके दोस्त थे और उन्हें वो एक अभिभावक के रूप में मार्गदर्शन देते थे। ये मेरा सौभाग्य रहा कि मैं दशोराजी से पिछले 35 सालों से जुड़ा था। जबकि मैं खुद करीब 18 साल छोटा हूं। लेकिन संबंधों में उम्र का यह अंतर कभी बाधा नहीं बना। कभी मित्र,कभी बडे भाई, तो कभी अभिभावक के रूप में उन्होंने हमेशा मार्गदर्शन किया।
आमतौर पर राजनीतिज्ञ,पत्रकारों से इस मोह में रिश्ता रखते हैं कि उन्हें प्रचार का ज्यादा अवसर मिलेगा। लेकिन दशोराजी ने कभी मुझ से संबंधों का इसके लिए दुरूपयोग नहीं किया। नवज्योति में उनके लिए कई ऐसी खबरें भी लिखी,जो राजनीतिक रूप से उनके लिए नुकसानदायक रही। लेकिन उन्होंने कभी इसके लिए उलाहना नहीं दिया।
राजनीति से इतर वकालत में भी उन्होंने कामयाबी के झंडे गाड़े। रेवेन्यू मामलों मे उनका ज्ञान इतना था कि रेवेन्यू बोर्ड के मेम्बर या चेयरमैन ही नहीं,कई बार राज्य के राजस्व मंत्री तक उनसे कानूनी राय लेते थे। उनके पास राज्य के ऐसे कई प्रभावशाली लोगों के मुकदमे थे कि कोई और वकील हो,तो इनसे भी अपने रिश्तों का सार्वजनिक प्रदर्शन कर उन्हें अपने हित में भुना लेता। दशोराजी इतने सौम्य व व्यवहार कुशल थे कि उनके सम्पर्क में आए अधिकारी भी उन्हें हमेशा सम्मान के साथ याद करते थे। उन्होंने सालों तक लायन्स क्लब के माध्यम से समाजसेवा भी की और खुद को इसमें भी हमेशा प्रचार से दूर रखा। आज के क्लब अध्यक्षों व सदस्यों की तरह नहीं, जो काम कम और प्रचार अधिक करते हैं।
ऐसे बहुआयामी और श्रेष्ठ व्यक्ति का इस तरह चले जाना हर उस व्यक्ति के लिए बहुत दुखद और पीड़ादायक है ,जो उनसे संपर्क में रहा है। यह अजमेर के लिए भी बहुत बड़ी क्षति है। सार्वजनिक क्षेत्र में उन जैसे व्यक्तित्व गिने-चुने ही होते हैं उन्हें भुलाना आसान नहीं होगा। ईश्वर उन्हें अपने श्री चरणों में स्थान दे। और उनके पुत्र अमित को इस दुख को सहने की ताकत दे। अमित के दुख का तो अंदाजा लगाना भी मुश्किल है। लेकिन अमित तुम अकेले नहीं हो,तुम्हारे साथ हम सब हैं। तुम हमारा परिवार हो।