अपनो का अनायास ही यंू चले जाने ने मृत्यु के शाश्चत सत्य की धारणा को प्रबल किया है। जीवन में एक श्वास का कितना महत्व है हम अब समझ रहे है। जीवन मृत्यु के संघर्ष में आधुनिक विज्ञान भी लाचार सा नजर आने लगा है। जीवन में सर्वाधिक प्रमुख अर्थ की महत्ता से वास्तविक परिचय तो अभी हुआ है। अर्थ संपन्न लोगों की विवश्ता देखकर यह भी अहसास हुआ है कि अर्थ आवश्यक है लेकिन अर्थ अंत नहीं। जीवन की आपाधापी व अर्थव्यवस्था की दौड़ में हम अपने परिवारो के साथ रहने का जो सुख था, एक दूसरे के सुख दुख में साथ रहने का जो इतिहास था उस सत्य से भी हमारा परिचय हुआ है। बच्चो को दूर विदेश में चले जाने व बस जाने का गम अब छलने लगा है। जीविकोपार्जन के चलते हम रिश्तो की संवेदनओं को जो भूल चुके थे उससे भी परिचय हुआ है।
परिवार के वृद्धजनो का अनुभव, उनके साथ रहने का जो सुख प्राप्त था उसे भी हम विस्मृत कर चुके थे उसे भी वर्तमान पीढ़ी को अहसास हुआ है। अर्थ के बल पर धर्मस्थलो के शिलालेखो पर अपना नाम लिखवाने के स्थान पर अब घर में रहकर अपने लिए, अपनो के लिए प्रार्थना करने की विस्मृति हमें पुन: याद आने लगी है। मैं बदलकर हम कब हो गया का पता भी चला है। अपने सहपाठियो के पुराने चित्रो को देखकर हमें अपने बचपन की अल्हड़ता याद आने लगी है। हमें अहसास होने लगा कि हम अब तक जरूरी और गैर जरूरी का अंतर भूल गए थे। संकट हमे आर्थिक परेशानिया जरूर दे गया लेकिन हमें परिवार का प्यार और करूणा का भाव जरूर देकर जा रहा है। प्रकृति के साथ हमारा किया गया भेदभाव उसके दोहन से आज हम स्वयं परिचित होने लगे है। प्रदुषण मुक्त हवा का झौंका जैसे ही हमारे शरीर पर पड़ा तो हम आनंदित हो गए। हमने प्रकृति को समझना, आध्यात्मिकता को देखना स्वयं प्रारंभ कर दिया। हमने महसूस किया कि प्रभु का निवास तो हमारे भीतर ही है। देवस्थलो में शांति की चाहत में जाने के साथ साथ स्वयं के भीतर की आवाज को सुनना भी प्रारंभ कर दिया। एक विशेष तथ्य जिससे हमारा परिचय हुआ है वह संकट मेें स्थितियों का सामना करने के लिए कितने धैर्य की आवश्यकता है। कभी कल्पना भी नहीं की थी उन्मुक्त विचरण करने वाले मानव को आज घरो में कैद भी रहने के लिए मजबूर भी होना होगा। आज हम सुनने के लिए तैयार हो चुके है,आज हम अपनी गलतियो से सीखने के लिए तैयार भी होने लगे है और यही सही समय है जब हम अपने आप को और अपनी संस्कृति को पुन: जीवित कर सकते है। रोग में हमारे साथ कंधे से कंधा मिलाकर हमारे जीवन के लिए प्रयासरत चिकित्सा कर्मी, पुलिस कर्मी, सेवारत नर्सिग कमिर्यो के प्रति कृतज्ञता का भाव आना हमारे मानव होने की छोड जा रहा है। यदि हम सभी मिलकर हमारे मन में उठे इन प्रश्रो को अपने अंह को छोड़कर तलाशने के लिए हमेशा के लिए तैयार हो जाएं तो एक नए युग का उदय हो पाएगा। आइए सभी मिलकर इस समय में मिली अनुभूतियों को जीवन में धारण करने का प्रयास जारी रखे। समय के साथ संक्रमण कम जरूर हुआ है लेकिन हममे जगी मानवता की करूणा को हमें हमेशा के लिए जगाए रखना है।
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