सूनी पड़ी है स्कूल की बिल्डिंग जो बच्चों की आवाजों से गूंजती रहती थी। विरान पड़े है बाग बगीचे ,गली की नुक्कड़ जहां बच्चों का शोर सबका ध्यान केन्द्रित कर लेता था।
पिंजरो में बन्द है वो मासूम बचपन जो सपनों के पंख लगा बेखौफ निडर दौड़ता भागता रहता था।
कोरोना ने बड़ो से ही नहीं अपितु बच्चों से भी बहुत कुछ छीन लिया। घर की चारदिवारों के बीच बचपन खो रहा है। दोस्तों के साथ जो पल गुजरते थे वो कहीं गुम हो गए है।
क्या इससे मानसिक दबाव बढ़ रहा है?
क्या बच्चे उतने खुश है जितने पहले थे?
क्या उनकी इच्छाएं कहीं दब तो नहीं रही?
अनेको ऐसे सवाल है जिनके उत्तर खोजने बाकी है। आइए बच्चों पर पड़ रहे कुछ दुष्प्रभावों पर नजर डालते हैः-
*ऑनलाइन पढ़ाई:- * जिन वस्तुओं से दूर रखने का प्रयास कर रहे थे वहीं वस्तुयें खुद हाथ में थमानी पड़ी।लैप्टॉप, कम्प्यूटर, टेबलेट जहां हम मान रहे थे दस साल से कम उम्र के बच्चों को इन सभी यन्त्रों का कम उपयोग करना चाहिए वहीं हमारी मजबूरी है की हमने खुद इन्हें बच्चों के हाथ में थमा दिया। 5-6 घण्टे ऑनलाइन पढ़ाई लगातार कानों पर हेडफोन और आंखें कम्प्यूटर स्क्रीन पर बच्चों को मानसिक तनाव उत्पन्न करने में सहायक है। बच्चों को जल्द ही चश्में लगाने की तैयारी है।
स्कूल के क्लास रूप में अपने सहपाठी मित्रों के साथ जितने चांव और असानी से किसी पाठ को याद कर लेते थे। उतना ही कठिन है एक कमरे में एक कुर्सी पर चार-पांच घण्टे लगातार बैठकर पढ़ना। ऐसा लग रहा है मानो किसी गलती की बहुत बड़ी सजा दी जा रही है।
*शारीरीक श्रम की कमी:-*
स्कूल में खेल के मैदान में दोस्तों के साथ भागना कौन फस्र्ट आयेगा की होड़ में पूरी हिम्मत के साथ दोड़ना। शाम को काॅलोनी के पार्क में जमकर उछलकूद करना। दोस्तों के साथ साइकिल रेस लगाना। गली के नुक्कड पर क्रिकेट के ना जाने कितने मेच खेल जाना। सब कहीं खो गया है। घर की चारदिवारी में घरो में भागने की जगह भी नहीं मिल रही। एक कमरे से दूसरे कमरे तक का सफर ही हो पा रहा है। ये बढ़ते बच्चों के शारीरिक विकास में भी बाधक है।
*सीमित होती सोचः-*
दो तीन साल के बच्चे बहुत आसानी से स्कूल में सीख लेते थे अपनी चीजों को दूसरे बच्चों के साथ बांटना। सीख जाते थे दोस्त बनाना उनकी दुनियां उनके घर के चार सदस्यों में ही सीमित हो गई है। गाय भैंस ऊँट, घोड़ा, कार, बस, ट्रक क्या होता है घूमते-घूमते देख कर ही सीख लेते थे लेकिन अभी केवल किताबे ही एक मात्र साधन है उन्हें ये सब सीखाने का। हर उम्र के बच्चों को अलग-अलग परिस्थितियों से निकलना पड़ रहा है।
*कुछ बातों का रखे ध्यान:-*
1. आपका समय ही बच्चों को इस तनाव से दूर रख सकता है।
2. बच्चों के साथ कुछ देर अवश्य खेले, कुछ देर व्यायाम करे । आउटडोर, इन्डौर जो भी खेल आप उनके साथ खेल सकते है खेले। आपकी पहल उनके शारीरिक विकास में सहायक होगी।
3. बच्चों को अपने साथ घर के छोटे-छोटे कार्यो में हाथ बटांने की बोले इससे उन्हें महसूस होगा की आपको उनकी मदद की जरूरत है और उनमें उर्जा का प्रवाह होगा।
4. बच्चों को उनके दोस्तों से वीडियों कॉल पर बात करवायें।
5. घर में कुछ समय उनके पसन्द का म्यूजिक बजायें, गाने बजायें जिससे एक खुशनुमा माहौल पैदा हो।
हमारे छोटे-छोटे प्रयास बच्चों को इस दौर में संभालने में सहायक होगे। अभी बच्चों पर विशेष ध्यान देने का समय है। आपका साथ बच्चों में मजबूती बनायें रखेगा। यही वक्त की मांग है।
लेखक अम्बिका हेडा