किसी ने ठीक ही कहा है यदि आप स्वामीजी की पुस्तक को लेटकर पढ़ोगे तो सहज ही उठकर बैठ जाओगे। बैठकर पढ़ोगे तो उठ खड़े हो जाओगे और जो खड़े होकर पढ़ेगा वो व्यक्ति सहज ही सात्विक कर्म में लग कर अपने लक्ष्य पूर्ति हेतु ध्येय मार्ग पर चल पड़ेगा। स्वामीजी की शिष्या अमेरीका की लेखक लिसा मिलर “ वी आर आल हिन्दूज नाऊ” शीर्षक के लेख में बताती है वैदऋग“ सबसे प्राचीन ग्रंथ कहता है कि सत्य एक ही है | इतिहास साक्षी है कि युग प्रवर्तक और मनुष्य का जीवन काल साधारणतः अल्पकालीन ही होता हे, ऐसे ही युग प्रवर्तकों में स्वामी विवेकानंद जी भी थे | उन्होंने अपने उन्तालीस वर्ष की अल्पायु (12 जनवरी 1863से 4 जुलाई 1902) में जो काम किये उसके लिये मानव मात्र हजारों साल तक उन्हें याद करेगा ।