आरटीआई बनी ब्लैकमेलिंग का जरिया

-कई ब्लैकमेलर आरटीआई लगाकर करते हैं ब्लैकमेल
-फिर धन ऐंठ कर आरटीआई वापस लेने या सूचना नहीं चाहने की बात लिखकर दे देते हैं

✍️प्रेम आनन्दकर, अजमेर।
👉सूचना का अधिकार (राइट टू इंफोर्मेशन यानी आरटीआई) कानून देश में पारदर्शिता, निष्पक्षता और स्पष्टता के साथ कार्य करने के लिए लागू किया गया था। यह कानून लागू करते समय केवल यही मकसद व मंशा रही कि जब लोग किसी सरकारी कामकाज से संबंधित सूचना मांगेंगे, तो शासन-प्रशासन में कार्य करने के प्रति पारदर्शिता और निष्पक्षता का पूरा ध्यान रखा जाएगा। दरअसल यह कानून अच्छी सोच और मकसद से लागू किया गया था, लेकिन अनेकों ब्लैकमेलरों और धंधेबाजों ने इसे ब्लैकमेल कर कमाई का अवैध धंधा बना लिया है। यदि कोई व्यक्ति साफ नीयत से आरटीआई लगाकर सूचना मांगना चाहता है, तो इसमें कोई हर्ज नहीं है, लेकिन यदि कोई आरटीआई लगाकर उस व्यक्ति, संस्था, अधिकारी या कर्मचारी को ब्लैकमेल करे, जिससे संबंधित जानकारी मांगी गई है, तो यह पूरी तरह गलत और कानून का सरासर दुरूपयोग ही माना जाएगा। हो भी यही रहा है। अनेक धंधेबाज या यूं कहें ब्लैकमेलरों के लिए यह कानून एक तरह से चांदी कूटने वाला साबित हो रहा है। अनेक सरकारी कार्यालयों में अधिकांश आरटीआई तो केवल ब्लैकमेल करने की नीयत से ही लगाई गई है, लगाई जा रही हैं।यदि सरकारी कार्यालयों में आरटीआई सेक्शन के कागजों या रिकाॅर्ड को खंगाला जाए, तो स्पष्ट रूप से यह पता चल जाएगा कि कितनी ही आरटीआई में खुद आवेदक ने आरटीआई लगाने के कुछ दिन बाद ही या तो यह लिखकर दे दिया है कि उन्हें अब अपने आवेदन से संबंधित कोई जानकारी नहीं चाहिए या जो जानकारी चाही गई थी, वह उन्हें विश्वस्त सूत्रों से या अन्य माध्यमों से मिल गई है।

प्रेम आनंदकर
इसका मतलब साफ है कि खुद को आरटीआई एक्टिविस्ट यानी आरटीआई कार्यकर्ता बताने वाले व्यक्ति ने आरटीआई लगाने के बाद उस व्यक्ति, फर्म, अधिकारी या कर्मचारी से संपर्क साधकर अच्छा-खासा धन ऐंठ लिया है, जिसके बारे में आरटीआई लगाई गई थी। जरूरी नहीं कि हर कोई व्यक्ति, फर्म, अधिकारी या कर्मचारी गलत काम करते हों। कई लोग पूरी तरह ईमानदारी, स्पष्टता और निष्पक्षता से काम करते हैं, लेकिन कई बार आरटीआई में बिना वजह उलझने के डर से वे धंधेबाजों के हाथों ठगे जाते हैं। बात यहीं खत्म नहीं होती। जिस तरह किसी व्यक्ति को हरामखोरी की खाने की आदत पड़ जाती है, उसी तरह की आदत इन ब्लैकमेलरों को भी पड़ गई है या पड़ जाती है। जो व्यक्ति, फर्म, संस्था, अधिकारी या कर्मचारी यदि एक बार आरटीआई लगाने वाले का ’’मुंह बंद’’ कर देते हैं, तो फिर वही तथाकथित आरटीआई कार्यकर्ता कुछ माह बाद फिर किसी-ना-किसी विषय को लेकर या तो खुद या अपने ही किसी परिचित के नाम से आरटीआई लगाकर फिर ब्लैकमेल करता है। बेशक आरटीआई लगाकर जानकारी मांगी जाए, लेकिन किसी को ब्लैकमेल नहीं किया जाए। शासन-प्रशासन को ब्लैकमेलिंग रोकने के लिए सभी सरकारी, अर्द्धसरकारी और स्वायत्तशासी संस्थाओं के कार्यालयों के आरटीआई सेक्शन से यह जानकारी लेनी चाहिए कि कितने आरटीआई कार्यकर्ताओं ने किस-किस मुद्दे को लेकर आरटीआई लगाई और किस-किस ने किस-किस मामले में कुछ समय बाद ही यह लिखकर दिया है कि उसे संबंधित आरटीआई से जुड़ी जानकारी नहीं चाहिए या सूत्रों से जानकारी मिल गई है। यह जानकारी लेने के बाद संबंधित आरटीआई कार्यकर्ता के खिलाफ ब्लैकमेल करने का मुकदमा दर्ज कराने या उसके खिलाफ कठोर कार्यवाही करने का कदम उठाना चाहिए। यही नहीं, ऐसे लोगों को जेल की हवा भी खिलाने का प्रावधान करना चाहिए। यदि शासन-प्रशासन इस तरह की व्यवस्था करता है या कठोर कदम उठाता है, तो ना केवल ब्लैकमेलिंग पर अंकुश लगाया जा सकेगा, बल्कि ब्लैकमेलरों के हौंसले पस्त होंगे और आरटीआई का दुरूपयोग रूक सकेगा।

error: Content is protected !!