लघु कथा

*मंदिर के पास बने चौक में लगे खंभे के नीचे लम्बे समय से एक गरीब मोची बैठता था। जो पुराने जूतों की सिलाई, मरमत आदि का काम करके अपना तथा परिवार का भरण पोषण करता था*।
*कुछ नए नवेले तथाकथित स्वयंभू समाजसेवियों ने मंदिर दर्शन आने वाले लोगों समझाया कि मंदिर के सामने जूते मरम्मत करने वाला बैठने से मंदिर के निकट गंदगी फैलती है तथा मंदिर की शोभा प्रभावित होती है*।
*स्वयंभू समाजसेवी ने लोगों का समर्थन हासिल करते गरीब मोची को वहां से अपनी दुकानदारी उठा लेने का निर्देश दिया । गरीब बेचारा अनुनय – विनय करता रहा। लेकिन किसी को उससे सहानुभूति नहीं हुई*।
*मोची की दुकान हट जाने के बाद वह स्थान खुला खुला सा चौडा नजर आने लगा*।
*कुछ महीने व दिनों के बाद उसी मोची के बैठने वाली जगह पर स्वयंभू ठेकेदार के परिचित समर्थक की चाय की दुकान लग गई।*🤔
*मंदिर के सामने गंदगी फैलाने वाला मोची नहीं अब चाय की दुकान केबिन तथा मुड्डियों पर सिगरेट का धुआं उड़ाते गप्पे मारते लोगों की भीड़ नजर आती है। मंदिर दर्शन करने वाले जाने वालों को चाय की केबिन के सामने बिखरी मुड्डियो के बीच से गुजरना पड़ता है।*

*यही जिंदगी हर गांव शहर में है।*

*हम सबको गौरव का अनुभव कराने वाले महान सम्राट विक्रमादित्य सहित अनेक महान गौरवमयी ऐतिहासिक यादें ताजा कराने वाले भारतीय नववर्ष २०७९ की हार्दिक शुभकामनाएं*

*हीरालाल नाहर पत्रकार*

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