लो जी, घर में नहीं हैं दाने, अम्मा चली भुनाने

-आयुर्वेद अस्पतालों में ना दवाइयां मिलती हैं, ना मलहम
-कई बरसों से आरामतलबी हो चुके हैं वैद्य और अन्य कर्मचारी
-बेहतर होता औचक निरीक्षण से पहले औषधालयों में दवाइयों का बंदोबस्त किया जाता
-औषधालयों में जाने वाले मरीजों को केवल दवा लिखी पर्चियां थमाई जाती हैं

✍️प्रेम आनन्दकर, अजमेर।
बड़े दिनों बाद आज प्रदेश स्तर पर एक अच्छी खबर आई। इसे अच्छी खबर किस नजरिए से माना जाए, यह बड़ा ही विचारणीय प्रश्न है। खबर यह है कि सम्पूर्ण राज्य में आयुर्वेद विभाग के 332 औषधालयों एवं चिकित्सालयों का औचक निरीक्षण करने पर 22 औषधालय बन्द मिले। इस दौरान 26 कार्मिक एवं अधिकारी अनुपस्थित पाए गए।

प्रेम आनंदकर
बकौल आयुर्वेद विभाग की शासन सचिव श्रीमती विनीता श्रीवास्तव, विभाग के सभी अधिकारियों को दो मई को औषधालयों एवं चिकित्सालयों के आकस्मिक निरीक्षण निर्देश दिए। राज्य के समस्त जिलों के उपनिदेशक, संभाग के अतिरिक्त निदेशक एवं निदेशक द्वारा एक साथ सम्पूर्ण राज्य में समस्त औषधालयों एवं चिकित्सालयों का निरीक्षण करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। इस दौरान औषधालयों में उपस्थित चिकित्सकों, नर्स एवं परिचारकों की जानकारी ली गई। साथ ही औषधालय में उपलब्ध औषधियों के बारे में भी वस्तुस्थिति प्राप्त की गई।उप निदेशक टोंक अरविन्द शर्मा एवं जयपुर-ए चन्द्रशेखर शर्मा द्वारा सर्वाधिक 15-15 निरीक्षण किए गए। निरीक्षण के दौरान राज्य में 22 औषधालय एवं चिकित्सालय बन्द पाए गए। इस दौरान 29 अधिकारियों द्वारा निरीक्षण किए गए। भीलवाडा जिले में 10 में से बीड का खेडा, उन्दारों का खेडा, थलोदा, नागौर जिले में 12 में से लालास, जिजोट, मारोठ, टोंक जिले में 15 में से बरथला, सवाईमाधोपुर जिले में 6 में से खिलचीपुर, भूरी पहाडी, पांचोलास, जयपुर जिले में 15 में से छारसा, दौसा जिले में 7 में से कालवान, गडरावा औषधालय बन्द पाए गए। इसी प्रकार पाली जिले में 8 में से निपल, घेनडी, रामासनी बाला, जालौर जिले में 8 में से रायथल, जोधपुर जिले में 8 में से जूड, पीथवास, अलवर जिले में 13 में से जलालपुरा, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र तिजारा तथा कोटा जिले में 4 में से सुलतानपुरा औषधालय बन्द पाए गए। उनके अनुसार चिकित्सक, नर्स एवं परिचारक द्वारा समय पर औषधालय नहीं खोलना ड्यूटी में लापरवाही को दर्शाता है। इसी प्रकार बिना पूर्व सूचना के अनुपस्थित रहना कदाचार की श्रेणी में आता है। निरीक्षण के दौरान बन्द पाए गए औषधालयों एवं चिकित्सालयों के स्टाफ एवं अनुपस्थित पाए गए कार्मिकों के विरुद्ध नियमानुसार आवश्यक कार्यवाही की जाएगी।
यह तो हुई सरकारी कार्यवाही, अब हकीकत भी जान लीजिए। भले ही श्रीमती श्रीवास्तव यह कार्यवाही कर सरकार से वाहवाही लूट लें, लेकिन आयुर्वेद अस्पतालों की स्थिति बहुत खराब है। इनमें मरीजों को देने के लिए दवाओं की बहुत बड़ी कमी है। विभिन्न बीमारियों के लिए बने हुए चूर्ण नहीं हैं। हाथों-हाथ दवा बनाकर देने के लिए जड़ी-बूटियों का पावडर नहीं है। मलहम नहीं मिलता है। त्वचा रोगों का मलहम बनाकर देने के लिए वेसलीन जैसी छोटी चीज भी नहीं है। जब कोई मरीज दवा लेने जाता है तो वैद्य उसे दवा की पर्ची लिखकर देते हुए बाजार से दवा खरीदने के लिए बोल देते हैं। पूछने पर बताया जाता है अस्पताल में काफी समय से दवा नहीं है और आगे से ही सप्लाई नहीं आ रही है तो हम कहां से दवा दें। वैसे भी आयुर्वेद अस्पतालों में बहुत कम मरीज जाते हैं और जब उन्हें ही दवा नहीं मिले तो इतना लंबा-चौड़ा लवाजमा लेकर बैठने, वैद्यों, नर्स, कंपाउंडर आदि स्टाफ को हर अस्पताल में लाखों रुपए वेतन देकर सरकार पर आर्थिक बोझ डालने की क्या जरूरत है। प्रमोटी आईएएस अधिकारी अजमेर निवासी श्रीमती श्रीवास्तव की गिनती संजीदा अफसरों में होती है। इसलिए उन्हें लापरवाह, मक्कार, कामचोर अफसरों व कर्मचारियों की खिंचाई व उनके खिलाफ कार्यवाही करने के साथ-साथ अस्पताल की दशा सुधारने के कदम उठाने होंगे, ताकि मरीजों को इन अस्पतालों में ही दवा मिल सके और बाजार में महंगी दवाइयां नहीं खरीदनी पड़े।

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