-सवाई मानसिंह अस्पताल के इन कारिंदों का क्या कसूर, बेचारे फोकट ही फंस गए
-कमीशन दिए बिना तो किसी भी सरकारी कार्यालय में बिल पास नहीं किए जाते हैं
हर कार्यालय में 5 प्रतिशत कमीशन फिक्स होता है, चाहे काम कितने ही राशि का होगा
-ऊपर तक पैसा भेजने की दुहाई दी जाती है, सच्चाई क्या है, भगवान जाने
✍️प्रेम आनन्दकर, अजमेर।
👉यह बात समझ में नहीं आ रही है कि जयपुर में राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल सवाई मानसिंह अस्पताल (एसएमएस) की लेखा शाखा के तीन हाकिमों को बिल पास करने की एवज में कमीशन की रकम लेते हुए भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने क्यों पकड़ा है। यह तो हर सरकारी कार्यालय का सदाचार और शिष्टाचार है। अगर यह तीनों बेचारे कमीशन ले रहे थे, कौनसा गुनाह कर रहे थे। उन्होंने वही किया, जो अघोषित रूप से सरकारी प्रक्रिया का हिस्सा बन चुका है। वैसे तो वित्तीय सलाहकार व मुख्य लेखा अधिकारी (एफए एंड सीएओ) बृजभूषण शर्मा, लेखा अधिकारी प्रकाश शर्मा और कैशियर अजय शर्मा को हवालात में पहुंचाने की बजाय सम्मानित किया जाना चाहिए, जो एक सांस में ही साढ़े 14 लाख रूपए डकार जाना चाहते थे, लेकिन हाय री एसीबी, पता नहीं तेरे किसने कान भर दिए और इन बेचारों को किसकी नजर लग गई, जो यह तीनों एसीबी के हत्थे चढ़ गए। हर सरकारी कार्यालय में आउट सोर्सिंग के तहत जितने भी काम ठेके पर कराए जाते हैं, किसी मशीन, उपकरण या सामग्री की सप्लाई हो, निर्माण कार्य हो या अन्य कोई-सा भी कार्य हो, काम होने के बाद बिल बिना कमीशन दिए पास ही नहीं किए जाते हैं। सरकारी कार्यालय में तीन से 5 प्रतिशत तक कमीशन फिक्स है।