भगवान कृष्ण की उपासना के पर्व जन्माष्टमी पर कृष्णमय हो कर उनकी शिक्षाओंको अपने जीवन में उतारें

j k garg
सनातन धर्म के अनुयायीयों केमतानुसार जब जब इस धरा पर राक्षसों और क्रूर शासकों के जुल्म और अत्याचार चरम सीमा तक बढ़ जाते हैं और जब सत्य पर असत्य, विनम्रता पर अहंकार, नैतिकता परअनैतिकता, सहिष्णुता पर असहिष्णुता, न्याय पर अन्याय और धर्म पर अधर्म हावी हो जाता है, तब जगत के पालनहार भगवान विष्णु खुद सत्य और धर्म की पुन: स्थापना करने हेतु पृथ्वी पर अवतरित होते है इसी कड़ी में भारत की पावन भूमी पर स्वयंभगवान विष्णु अपनी सोलह कलाओं के साथ आठवें अवतार के रूप में भाद्रपदमास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी की मध्यरात्रि को रोहिणी नक्षत्र में क्रष्ण के रूप में अवतरित हुए थे | भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता के माध्यम से मानव जीवन के गूढ़रहस्यों सरल भाषा में समझाते हुवे निष्काम भाव से सात्विक कर्म करके उन्हेंपरमात्मा को समर्पित करने कहा था | कृष्ण ने केवल उपदेश ही नहीं दिए ,उन्होंने उनको साकार कर भी दिखाया | जैसे गीता के रूप में उनकी वाणी अनुकरणीय है वेसे ही उनका जीवन भी | भगवान ने बताया कि रिश्ते कैसे निभाये जाते है , अपने जीवन को कैसे प्रेममय बनाया जाता है और जीवन के उतार चड़ाव कासामना मुस्कराते हुये कैसे किया जाता है भगवानकृष्ण ने हमको समझाया कि हम क्यों व्यर्थ की चिंता करते हैं? किससेव्यर्थ डरते है ? कौन हमेंमार सकता है? आत्माअविनाशी और अमर है। जो हुआ वह अच्छा हुआ, जो होरहा है वह अच्छा हो रहा है, जो होगा, वह भीअच्छा ही होगा। तुम भूतका पश्चाताप ना करो, भविष्यकी चिंता ना करो। ।ध्यानपूर्वक सुनो तुम्हारा क्या गया गया, जो तुमरोते हो? तुम क्या लाए थे, जो तुमनेखो दिया? तुमने क्या लाये होजो नष्ट हो गया है ? ना तुमकुछ लेकर आए, जो लिया यहीं से लिया। जो दिया, यही परदिया। जो लिया, भगवान सेलिया। जो दिया भगवान कोदिया। इंसान खाली हाथआया और खाली हाथ जायगा। जो आज तुम्हारा है, कल किसी का था, परसों किसी और का होगा। तुम इसे अपना समझ कर मग्न हो रहे हो। बस यही प्रसन्नता तुम्हारे दुखों का मूल कारण है।विश्वास रखों परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन हैं। यही सबसे उत्तम सहारा है। जो इसके सहे को जनता है वह भय, चिन्ता, शोक सेसर्वदा मुक्त है।जो कुछ भी तुम करते हो उसे, भगवान कोअर्पण कर दो। ऐसा करनेसे तुमको सदा का आनंद अनुभव होगा। |इस जन्माष्टमी क्रिस की उपासना करते हुये उन्हें अपने जीवन मे उतारे | कर्तव्य परायणता की यही शिक्षा श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र की रणभूमि में गीता के माध्यम से अर्जुन को दी थी, जो युद्ध भूमी में अपने स्वजनों की संभावित म्रत्यु के भय से आह होकर अपने क्षत्रिय धर्म एवं कर्तव्य से मुहँ मोड़ कर युद्ध नहीं करना चाह रहें थे। एक क्षण में तुम करोडो के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जातेहो। मेरा -तेरा, छोटा -बड़ा, अपना -पराया मन से मीठा दो, फिर सबतुम्हारा हैं, तुम सबकेहो।यह शरीर अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से बना है और इसमें ही में मिलजाएगा। परन्तुआत्मा स्थिर हैं अविनाशीहै तुम नाशवान शरीर नहीं तुम तो अविनाशी आत्मा हो तुम अपने आपको भगवान को अर्पित करो। निसंदेह गोवर्धन कान्हा के सम्पूर्ण जीवन काल में कर्म की ही प्रधानता रहीथी । अपने सगे मामा कंस का वध कर कृष्ण ने यह संदेश दिया है कि मानव जीवन में जीवनके अन्दर रिश्तों से बड़ा कर्तव्य होता है | भगवान कृष्ण के जन्म के 6 दिन बाद कंस गोकुल में ढूंढ ढूंढकर नवजात शिशुओं का वध करने लगा । कंस ने इसके लिए अपनी मुंह बोली बहन पूतना राक्षसी को भेजा था । बताया जाता है कि पूतना में 10 हाथियों जितना बल था । पूतना ने कृष्ण को मारने के लिए अपने स्तनों पर हलाहल विष लगा था पूतना ने मनोहर नारी का रूप धारण किया और आकाश मार्ग से सीधा नंद बाबा के महल में गई और सोते हुए कृष्ण को गोद में उठाकर अपना दूध पिलाने लगी । अन्तर्यामी श्री श्री कृष्ण पूतना की चाल जान गये और उन्होंने अपने दोनों हाथों से उसके स्तनों को धाम करके उसके प्राण समेत दुग्धपान करने लगे । इससे पूतना चिल्लाने लगी और बाल गोपाल को हटाने लगी लेकिन भगवान हटे नहीं । वह इतनी परेशान हो गई कि वह अपने असली रूप यानि राक्शनी के रूप में आकर चारो तरफ चिल्लाने लगी । इससे गोकुल के नागरिक भयभीत हो गए ।राक्षसी स्वरूप में पूतना पृथ्वी पर गिर गई और जब गिरने की आवाज सुनाई दी तो नंद बाबा , यशोदा माता और रोहित उसके पास दौड़े – दौड़े गये उन्होंने वहां जाकर देखा कि कृष्ण भयंकर राक्षसी के स्तनपान कर रहे थे । उन्होंने तुरंत बच्चे को उठाया और अपने पास रखकर बोले कि आज लल्ला की रक्षा भगवान ने खुद की है । भगवान के हाथों वध होने के बाद पूतना को लेने के लिए बैकुंठ धाम से विमान आया जो पूतना को विष्णु लोक ले गया और वह जन्म मरण के चक्र से मुक्त हो गई । इसके बाद भगवान कृष्ण ने पूतना को मां का दर्जा दिया और मुक्ति प्रदान की । बताया जाता है कि पूतना पूर्व जन्म में राजा बलि की पुत्री रत्नावली थी । कथा के अनुसार जब भगवान विष्णु वामन अवतार में राजा बलि के पास गए थे तब उनकी छवि इतनी मनमोहक थी कि रत्नमाला के मन में मातृ भावना जाग उठी । राजकन्या ने कामना की काश यह मेरा पुत्र होता और मैं इसको हृदय से लगाकर दुग्धपान करवाती और बहुत दुलार करती । राजा बली की म्रत्यु को जान कर वो अपना आपा खो बैठी और उसने कृष्ण को अगले जन्म में विष का स्तन पान करवाने का संकल्प लिया | रत्नावली ने पूतना का जन्म लिया और एक ही जन्म में अपनी दोनों इच्छाओं को पूरा किया । भगवान श्रीकृष्ण ही वे व्यक्ति थे, जिन्होंने अर्जुन को गीता के माध्यम से कायरता से वीरता, विषाद से प्रसाद की ओर जाने का दिव्य संदेश दिया था। सर्वाधिक विषैला कालिया नाग के फन पर नृत्य करने वाले भी कृष्ण ही थे कालिया नाग के दस फन इन्सान की दस दुर्गुणों के प्रतीक थे | | युवराज दुर्योधन के राजसी भोजन को त्याग कर महात्मा विदुर जी के यहाँ रुखी साग रोटी खाने वाले भी क्रष्ण ही थे, उन्होंने अभिमानी युवराज के उपर विनयशील सत्यनिष्ट विदुर जी की मेहमाननवाजी स्वीकार की | देवराज इंद्र का दर्भ-अहंकार नष्ट करने हेतु सम्पूर्ण गोवर्धन पर्वत को अपनी अगुंली पर उठाने वाले गिरिधारी भी क्रष्ण ही थे ,। महाभारत युद्ध के दोरान उचित समय आने पर भीम से दुर्योधन की जंघा पर प्रहार करवाने वाले भी क्रष्ण ही थे | शिशुपाल की 100 गलतियों को माफ़ करने के बाद उसकी 101वी गलती पर सुदर्शन चक्र से वध करने वाले ने संदेस दिया की आततायी का अंत होगा ही | महाभारत युद्ध में अर्जुन के सारथी बनकर पांडवों को विजय दिलवाने वाले भी भगवान क्रष्ण ही थे। सच्चे मित्र धर्म को निभाने वाले एवं ग़रीब के पो सुदामा की पोटली में से कच्चे चावलों को खाकर उसके बदले सुदामा को राज्य एवं सौभाग्य देने वाले भी कान्हा ही थे। द्रिकपंचांग डॉट कॉम के अनुसार,19अगस्त 2022 यानि विक्रमसंवत् 2079 के भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी भगवान श्रीकृष्ण की 5249वीं जयंती है। जन्माष्टमी का यह पावन पर्व देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है जहाँ मथुरा, वृदांवन और यूपीएवं अन्य प्रान्तों कृष्ण-लीलाएं और रास-लीलाएं आयोजित की जाती हैं, वहीं महाराष्ट्रमें माखन चोर कन्हैया की माखन की मटकीयां फोडी जाती है | भगवान क्रष्ण कासम्पूर्ण बचपन अनगिनत लीलाओं से भरा हुआ है | इसलिए इस दिन झांकियों के जरिये भक्तजन उनके बाल जीवन को प्रदर्शित करने झाकियों का आनन्द लेते हैं | जन्‍माष्‍टमी के अवसर पर पुरूष व औरतें उपवास अर्चना प्रार्थना करते हैं | मन्दिरों व घरों को सुन्‍दर ढंग से सजाया जाता है और विभिन्न मनमोहक झाकियां बनाई जाती हैं | जगह-जगह रासलीलायें होती है | मन्दिर घरों में विशेष पूजा-अर्चना- प्रार्थना एवम् धार्मिक आयोजन कियेजाते हैं | क्रष्ण भक्त इस दिन व्रत रखते हैं अष्ठमी की रात 12 बजे भगवान काश्रीकृष्ण का संकेतिक रूप से जन्म होने पर व्रत का परायण करते हैं। आइये जन्माष्टमी के पावन पर्व सभी सनातनधर्मी संकल्प ले कि हम भगवान कृष्ण की को ओं को अपने जीवन में उतारें अंदर उतारे और उसे मूर्त रूप दें |

डा जे के गर्ग पूर्व संयुक्त निदेशक कालेज शिक्षा जयपुर

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