ऋषभायतन मैं दशलक्षण पर्व के अवसर पर आज उत्तम शौच धर्म की पुजा अर्चना

आज ऋषभायतन वैशाली नगर व वीतराग विज्ञान स्वाध्याय मंदिर पुरानी मंडी मैं सुबह 7 से 10 बजे तक जिनेन्द्र प्रभु के अभिषेक के बाद नित्य नियम पूजा , देव शास्त्र गुरु पूजन पँचमेरू पूजन सोलह कारण पूजन समुच्चय पूजन दसलक्षण पर्व के चौथे दिवस विधान पूजन मैं आज उत्तम शौच धर्म पर पूजन,उसके बाद विश्व शांति पाठ क्षमापना पाठ , आयोजित हुए। समस्त कार्यक्रम कोकिलकंठी पंडित सुनील धवल के सानिध्य मैं संगीत की मधुर ध्वनि के साथ आयोजित हुए। शाम को इस अवसर पर पंडित विराग शास्त्री जबलपुर ने प्रवचन सभा को उत्तम शौच धर्म पर बताया कि
शौच अर्थात ‘शुचिता’। आत्मा के परिणामों अर्थात विचारों तथा अभिप्राय में शुचिता होना शौच है। वह शुचिता जब सम्यग्दर्शन अर्थात आत्मा के श्रद्धान के साथ होती है, तब ‘उत्तम शौच धर्म’ नाम पाती है।

इसमें व्यवहार से, लोभ के अभाव संतोष के भाव को भी शौच धर्म कह दिया जाता है।लोक में, शरीर की शुचिता को, शुद्धता को ही मात्र शुद्धता मानते हैं। परंतु, जैनधर्म में शरीर की शुद्धता से अधिक परिणामों की शुद्धता पर बल दिया है। और वह शुद्धता लोभ लालच के भाव का त्याग करने पर प्रगट होती है। जीव के ह्रदय अर्थात अंतर के परिणामों में संतोष होना चाहिए तथा शरीर से उसे सदैव तपस्या करनी चाहिए। तथा शौच धर्म का पालन करने वाला सदैव निर्दोष होता है, इसलिये उसे सबसे बड़ा धर्म कहा गया है।लोक के समस्त पाप लोभ के वशीभूत होकर होते हैं। लोभी जीव वस्तु की प्राप्ति के लिए हिंसा करता है, झूठ बोलता है, चोरी करता है, यदि वस्तु मिल जाती है तो कुशील के भाव कर हर्ष मनाता है तथा परिग्रह को जोड़ने में ही निरन्तर समय व्यतीत करता रहता है। इस प्रकार, समस्त पापों के पीछे लोभ ही मुख्य कारण है,तथा, “जब लोभ का नाश हो जाता है तब जीव स्वतः ही निर्दोष हो जाता है,तथा ‘लोभ पाप का बाप है’, यह कथन भी लोक में विख्यात है।
यह ठीक उसी प्रकार है, जैसे कोई घड़ा ऊपर से तो अमल (स्वच्छ) हो तथा अंदर से उसमें मल भरा हुआ हो तो कौन उसे स्वच्छ कहेगा?; वैसे ही, यह देह भी ऊपर से तो सुंदर दिखाई देती है परंतु अंदर झांकने पर इसके समान अस्वच्छ वस्तु कोई नहीं है।इसलिए ज्ञानीजन इस मैली देह के राग को छोड़कर अनंत गुणों की पोटली जो भगवान आत्मा तथा उत्तम शौच धर्म है, उसे धारण करते हैं।
इस प्रकार हमें भी “उत्तम शौच धर्म” को धारण करना चाहिए।
विजय पांड्या
9783933641

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