आध्यात्मिक व सामाजिक महत्व का पंचदिवसीय पर्व दीपावली

डॉ कविता माथुर, जयपुर

कार्तिक मास की अमावस्या के साथ हमारे देश में आध्यात्मिक व सामाजिक महत्व के पंचदिवसीय पर्व दीपावली का आगमन होता है, जिसमें प्रत्येक दिवस का अपना माहात्म्य है। यूं तो वैदिक काल से ही हमारे देश भारत में मिट्टी के दीप प्रज्वलित करने की परंपरा रही है, परंतु कालांतर में भिन्न-भिन्न कारणों से इस परंपरा को एक पर्व के रूप में मनाया जाने लगा। कहा जाता है कि ‘मिट्टी का दीपक ‘ पंच-तत्वों का प्रतीक है। इसके निर्माण में मिट्टी को जल से गूंधकर आकार देने के पश्चात धूप और हवा में सुखाया जाता है। तदोपरांत अग्नि में तपाकर पकाने से उसे मजबूती प्रदान की जाती है।इस तरह क्रमश: पृथ्वी,जल,गगन,समीर तथा पावक , पांचों तत्वों के सम्मिश्रण से दीपक निर्मित होता है। संभवतः यही कारण है कि इसे प्रज्वलित करने से हम वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार पाते हैं।
दरअसल तकनीकी-विज्ञान विकसित न होने से जीवनशैली में प्राकृतिक तत्वों का ही समावेश था । जनसंख्या विस्तृत न होने के कारण प्रकृति से हमारा सामंजस्य उचित रूप से स्थापित था और स्वस्थ जीवन जीने में बाधा उत्पन्न नहीं होती थी। वर्तमान में दीपावली का जो रूप निर्मित हुआ है, मूल रूप वैसा नहीं था। उदाहरणार्थ बिजली द्वारा की जाने वाली रोशनी और पटाखे उसमें शामिल नहीं थे।
दीपावली मनाने से संबंधित अनेक मान्यताएं,जो सच भी हो सकती हैं और मिथक भी, प्रचलन में हैं।मसलन, १) समुद्र -मंथन के दौरान कार्तिक अमावस्या के दिन ही लक्ष्मी प्रकट हुई थीं, जिस कारण इस दिन उन्हें पूजा जाता है।
२) इस दिन ही भगवान विष्णु अपने पांचवें अवतार ‘वामन’ के रूप में अवतरित हुए और राजा बलि के कारा से लक्ष्मी को रिहा किया।
३) द्वापर युग में कृष्ण ने कार्तिक अमावस्या से एक दिन पहले नरकासुर द्वारा बंदी बनायी गईं सोलह हज़ार स्त्रियों को मुक्त कराया था। इसलिए दीपावली से पूर्व का दिन नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है।
४) बंगाल व उड़ीसा में मान्यता है कि विश्व में उपद्रव और उत्पात मचाने वाले असुरों के संहार करने के लिए दुर्गा ने इस दिन मां काली का रौद्र रूप धारण किया था। यही कारण है कि यहां दीपावली पर मां काली की आराधना की जाती है।
५) कहते हैं कि बारह-वर्षीय अज्ञातवास के उपरांत पांडवों की इसी दिन वापसी हुई थी।
६) एक मान्यता के अनुसार प्राचीन उज्जयिनी नगरी के महान राजा विक्रमादित्य इसी दिन सिंहासनारुढ़ हुए थे।
७) सर्वाधिक लोकप्रिय मान्यता यह है कि इस दिन प्रभु राम इस दिन रावण पर विजय प्राप्त करने के बाद अयोध्या लौटे थे, जिनके स्वागत हेतु समस्त नगरवासियों ने घी के दीप प्रज्वलित कर शहर को सुसज्जित किया था।
लेकिन व्यावहारिक रूप से देखा जाए तो इस समय हमारे देश में ख़रीफ़ की फ़सल तैयार होने के कारण चारों ओर हर्षोल्लास का माहौल होता है। बाज़ार सजते हैं, खरीदारी की जाती है,नानाविध पकवान बनते हैं जिन्हें मिल बांट कर भोगा जाता है।

असतो मा सद्गमय
तमसो मा ज्योतिर्गमय
मृत्योर्मामृतम् गमय!

अर्थात्, हम असत्य से सत्य की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर तथा मृत्यु से अमरत्व की ओर गमन करें। कुल मिलाकर बृहदारण्यक उपनिषद् में उल्लिखित इस पवनान मंत्र का सार ही दीपों के त्योहार दीपावली का मूल भाव है।

जिस तरह अपने गृह में मां लक्ष्मी के आगमन का आस लिए कई दिनों पहले से ही सफ़ाई प्रारंभ कर दी जाती है और रोशनी से सजाया जाता है,उसी प्रकार अपने मन से समस्त बुराइयां,राग, द्वेष,लोभ,मोह, ईष्या इत्यादि मन-मालिन्य का त्याग कर पावन मन को विशुद्ध भाव से उज्जवल किया जाय, तो निश्चित ही उसमें ईश्वर का वास रहेगा।

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