केले का पेड़ सिर्फ पूजा पाठ में ही नहीं, शरीर में घातक रसायनों को पहुंचने से रोकने में भी उपयोगी है। इससे किसानों की मेहनत और खर्च दोनों बचेंगे और अनजाने में शरीर को दूरगामी नुकसान भी नहीं झेलना पड़ेगा।
जीआरएम सीनियर सेकेंड्री स्कूल में बायोलॉजी विषय की शिक्षिका सौमी विश्वास डे ने शोध से यह नतीजा निकाला। उन्होंने बताया कि किसी भी फसल के साथ खेतों में अनचाहे पौधे यानी खर-पतवार भी उग आते हैं। उनको किसान न हटाएं तो उपज के साथ उनको भी खाद-पानी देना पड़ेगा। आधा खर्च इन अनचाहे पौधों पर खर्च करने से किसानों को भारी नुकसान होगा। इसी वजह से दवाओं और उर्वरकों के जरिये या गुड़ाई करके ये अनचाहे पौधे नष्ट किए जाते हैं। जो खाद या दवाएं लगाई जाती हैं उनका फसल पर भी प्रभाव पड़ता है। तमाम घातक रसायन उपज की खपत के दौरान शरीर में पहुंच जाते हैं। इसका नुकसान दूरगामी तौर पर कई शोध पहले ही बता चुके हैं।
ऐसे रोक सकते हैं नुकसान
शिक्षिका सौमी विश्वास डे ने बताया कि खर-पतवार [गाजर घास, मुत्था घास, जंगली चौलाई, भूमि आंवला] पर केले की जड़ का रस डालकर देखा तो वे आसानी से नष्ट हो गए। जिन जगहों पर केले के पेड़ हैं, वहां करीब दस फीट के अंदर ये खतवार नहीं पाया गया। आसपास की जमीन के पोषक तत्वों में भी इससे कमी नहीं आती। उन्होंने कहा कि बिना खास लागत के खेत के चारों ओर केले के पेड़ लगाने से किसानों के साथ सभी के स्वास्थ्य को नुकसान से बचाया जा सकता है।
सौमा ने एमजेपी रुहेलखंड विश्वविद्यालय से बरेली कॉलेज वनस्पति विभाग के डा.अनुपम आनंद के निर्देशन में स्टडी ऑन द यूज ऑफ एलेलोपैथी पोटेंशियल ऑफ म्यूसा पैराडाइसा बायो कंट्रोल ऑफ सम कॉमन विड्स विषय पर यह शोध किया।