रिलायंस को सेबी ने दिया झटका

पूंजी बाजार नियामक सेबी ने फीस अदा कर शेयरों में गड़बड़ी के विभिन्न मामलों को सहमति से निपटाने के 149 आवेदन खारिज कर दिए हैं। इनमें देश की दिग्गज कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआइएल) के 16 आवेदन भी शामिल हैं। ये आवेदन आरआइएल समूह की विभिन्न इकाइयों की ओर से दिए गए थे। रिलायंस के चेयरमैन मुकेश अंबानी के करीबी मनोज मोदी की याचिका को भी नियामक ने ठुकरा दिया है।

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) का मानना है कि संबंधित मामलों को केवल कुछ शुल्क लगा कर नहीं निपटाया जा सकता। जिन अन्य फर्मो और व्यक्तियों के आदेवन खारिज किए गए हैं उनमें ब्रोकरेज फर्म इंडिया इन्फोलाइन, एचएसबीसी इन्वेस्टडाइरेक्ट सिक्योरिटीज और बैंक ऑफ राजस्थान के शेयरों में गड़बड़ी करने वाली फर्मेभी शामिल हैं। इसके अलावा जीएमआर होल्डिंग्स, एडसर्व सॉफ्टसिस्टम्स, पीएमजे प्रॉपर्टीज, स्पलैश मीडिया एंड इन्फ्रा लिमिटेड के आवदेन भी ठुकरा दिए गए हैं।

सेबी ने 149 आर्जियां खारिज करते हुए कहा है कि ये संशोधित दिशानिर्देशों के मुताबिक नहीं हैं। इन मामलों में कार्रवाई कानून के मुताबिक जारी रहेगी। रिलायंस समूह की खारिज अर्जियों में 13 रिलायंस पेट्रोलियम से संबंधित हैं। इस कंपनी का अब रिलायंस इंडस्ट्रीज में विलय हो चुका है।

शेयर कारोबार में धोखाधड़ी एवं अनुचित व्यापार व्यवहार रोकथाम के लिए सेबी के नियमों के उल्लंघन का रिलायंस पेट्रोलियम पर आरोप है। समूह के बाकी तीन आवेदन रिलायंस समूह की एक अन्य पूर्ववर्ती कंपनी इंडियन पेट्रोकेमिकल्स कॉरपोरेशन (आइपीसीएल) से जुड़े हैं। ये मामले भेदिया कारोबार रोधी नियम के कथित उल्लंघन के हैं।

आइपीसीएल सरकारी कंपनी थी। पिछले दशक में सरकार के विनिवेश कार्यक्रम के तहत रिलायंस समूह ने इसका अधिग्रहण कर लिया था। इसके बाद शेयर बाजार से इसकी सूची बद्धता खत्म करा ली गई थी।

सेबी के सहमतिपूर्ण निर्णय या आदेश व्यवस्था के तहत यदि कंपनियां कुछ निश्चित शुल्क का भुगतान करें और शेयरों में गड़बड़ी के जरिये कमाए गए धन हर्जाने के रूप में देने को तैयार हों तो उसे सहमति से निपटाया जा सकता है। इसके लिए जरूरी है कि सेबी संबंधित मामलों को इस योग्य पाता है या नहीं। यह व्यवस्था पुरानी है पर सेबी ने पिछले साल मई में इसके प्रावधानों को कुछ और कड़ा किया था। नई व्यवस्था में भेदिया कारोबार जैसे कुछ मामलों में सहमति आदेश के जरिये मामलों को नहीं निपटाया जा सकता।

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