*तबादला उद्योग की मार कब तक सहते रहेंगे शिक्षक*

-शिक्षकों की स्थाई तबादला नीति ज्वलंत मुद्दा, सुलझने की बजाय झुलसते हैं शिक्षक
-क्या मुख्यमंत्री अशोक गहलोत शिक्षकों को तबादलों में भ्रष्टाचार से मुक्ति दिला नहीं सकते

✍️प्रेम आनन्दकर, अजमेर।
👉दोस्तों राजस्थान में शिक्षकों की स्थाई तबादला नीति हमेशा से ज्वलंत मुद्दा रही है। तबादला उद्योग चरमसीमा पर चलता है। इसमें शिक्षक सुलझने की बजाय और ज्यादा झुलसते हैं। जब-जब शिक्षकों के तबादले की बातें होती हैं, तब-तब स्थाई नीति बनाने की लंबी-चौड़ी बातें और घोषणाएं तो की जाती हैं, लेकिन नतीजा ’’ढाक के तीन पात’’ रहता है। अब भी शिक्षकों के तबादले की बातें की जा रही हैं, लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनकी सरकार की ओर से अभी तक स्थाई नीति बनाने की केवल बातें ही की जा रही हैं, धरातल पर कुछ भी नजर नहीं आ रहा है। तो बात करते हैं शिक्षकों की स्थाई तबादला नीति को लेकर पूर्ववर्ती भाजपा और वर्तमान कांग्रेस सरकार में घटे घटनाक्रमों की। यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा इस साल नवंबर-दिसंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए वर्तमान कार्यकाल के आखिरी आठ-दस महीनों में अनेक योजनाएं लागू की गईं व ऐसे कार्य किए गए हैं, जो किसी ने सोचे भी नहीं थे। कुछ योजनाएं लागू कर उन्होंने विपक्षी दल भाजपा को निरूत्तर कर दिया है। राज्य कर्मचारियों के संदर्भ में विभिन्न प्रकार की योजनाएं व उनके रुके हुए कार्यों को पूरा करने की कदम बढ़ाकर गहलोत ने चुनाव की दृष्टि से उन्हें साधा है। पुरानी पेंशन योजना लागू करके गहलोत ने देश को एक नई दिशा देने का काम किया है। इस विषय में कोई कर्मचारी संगठन सोच भी नहीं सकता था कि राजस्थान से इसकी शुरुआत हो सकती है। राजस्थान में लाखों-करोड़ों रुपए लगाकर विभिन्न योजनाओं को चलाया जा रहा है। गहलोत अपने आलाकमान के सामने और विधानसभा में बार-बार यह बयान दे चुके हैं कि हम पिछले विधानसभा चुनाव के समय जारी चुनावी घोषणा पत्र की 90 प्रतिशत से ज्यादा घोषणाएं और वादे पूरा कर चुके हैं। लेकिन इसी घोषणा पत्र में यह वादा किया गया था कि यदि कांग्रेस सत्ता में आई, तो कर्मचारियों के लिए स्थाई तबादला नीति बनाई जाएगी। यह सर्वविदित है कि तबादलों में भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के आरोप लगते हैं। कहीं-ना-कहीं बिना राजनीतिक जान पहचान यानी अप्रोच या अन्य प्रकार की व्यवस्थाएं किए तबादले नहीं होते हैं। स्थाई तबादला नीति बनाने की मांग को कर्मचारियों ने हमेशा प्रमुखता से उठाया है। जब कांग्रेस ने पिछले चुनावी घोषणा पत्र में जब इस बात का जिक्र किया था तो कर्मचारियों में आशा की किरण जगी थी। किंतु साढ़े चार साल बीत जाने के बाद भी आज तक इस मांग पर किसी प्रकार की कोई सुगबुगाहट नजर नहीं आती है। गाहे-बगाहे सिर्फ बयान जारी कर दिए जाते हैं कि स्थानांतरण नीति बनाई जाएगी, वह भी सिर्फ शिक्षकों की। बाकी राज्य कर्मचारियों की तो कोई बात ही नहीं करता है। हालांकि यह भी सत्य है कि राजस्थान का सबसे बड़ा विभाग शिक्षा विभाग है और अकेले शिक्षा विभाग में जितने तबादले होते हैं, उतने सारे विभागों को मिलाकर भी नहीं होते हैं। शिक्षकों के तबादलों में भ्रष्टाचार होता है या नहीं, शिक्षकों को तबादले के लिए रिश्वत देनी पड़ती हैया नहीं, इस बात को सार्वजनिक रूप से कुछ साल पहले जयपुर के बिरला ऑडिटोरियम में शिक्षक दिवस के अवसर पर खुद मुख्यमंत्री गहलोत ने उपस्थित शिक्षक समुदाय से पूछा था। मौजूद मीडिया के सामने उपस्थित शिक्षकों ने जोदार एकस्वर में कहा था कि हां तबादले के लिए रिश्वत देनी पड़ती है। इतना सब-कुछ साफ होने के बाद भी स्थाई तबादला नीति अभी तक नहीं बनाया जाना बड़ा ही आश्चर्यजनक है। पहले शिक्षा राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) वर्तमान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंदसिंह डोटासरा थे। उनके इस्तीफा देने के बाद कैबिनेट मंत्री बी.डी.कल्ला को शिक्षा विभाग का दायित्व सौंपा गया। कल्ला ने भी स्थाई नीति बनाए बिना ही व्याख्याता-प्रधानाचार्य के बड़ी संख्या में तबादले कर दिए। मजे की बात यह है कि कल्ला साहब ने जो तबादले किए, उनके लिए तो किसी प्रकार के आवेदन भी नहीं लिए गए। जब आवेदन ही नहीं लिए गए, तो बड़ी संख्या में कैसे और किसके तबादले किए गए, यह बड़ा ही सवालिया निशान है। जाहिर है, जिनके तबादले हुए, उनके नाम राजनेताओं ने दिए होंगे या उनसे सूचियां मांगी होंगी। राजनेताओं ने अपने मिलने वालों को उपकृत किया। राजनेता जिनसे वह खुश नहीं थे, उनको लटका दिया। राजस्थान सेवा नियम में स्पष्ट रुप से लिखा हुआ है कि तबादले के लिए राजनीतिक व्यक्ति से किसी प्रकार की जान-पहचान या अप्रोच नहीं कराई जाएगी। नियम में यह भी प्रावधान है कि अगर कोई कर्मचारी ऐसा करता है, तो उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। एक तरफ इस तरह के प्रावधान हैं, दूसरी तरफ राजनेताओं से नाम मांग कर कर्मचारियों के तबादले किए जाते हैं। इससे यह साफ जाहिर हो जाता है कि इस नियम का जमकर उल्लंघन होता है, हुआ है और हो रहा है।

प्रेम आनंदकर
अब सवाल यह उठता है कि जब इस नियम का उल्लंघन होता है, तो क्या सरकार उल्लंघन करने वाले शिक्षा मंत्री या राजनेताओं या उस संबंधित कर्मचारी के खिलाफ कार्यवाही क्यों नहीं करती है। राजस्थान में शिक्षकों की स्थाई तबादला नीति बनाने की मांग काफी समय से चल रही है, किंतु शिक्षकों को हर बार निराशा ही मिलती है। पता चला है कि कुछ दिन पहले ही जयपुर में प्रदेश कांग्रेस कार्यालय के बाहर शिक्षा राज्यमंत्री से 3,00,000 रूपए लौटाने वाले पोस्टर लगाकर गुहार लगाई गई है। इस पोस्टर में लिखी गई बातें कितनी सच हैं, कितनी अनर्गल, यह जांच का विषय है। लेकिन इस तरह के आरोप-प्रत्यारोप हर बार तबादलों में लगते रहे हैं। चाहे वर्तमान शिक्षा मंत्री हां पूर्व शिक्षा मंत्री। पिछले भाजपा शासनकाल में भी तबादले करने वालों पर आरोप-प्रत्यारोप लगते रहे हैं। पूर्ववर्ती सरकार में शिक्षा राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) वासुदेव देवनानी ने भी बड़ी संख्या में तबादले किए थे और उन पर भी आरोप लगे थे। उनकी ही सरकार में तत्कालीन चिकित्सा राज्यमंत्री ने तो देवनानी से उनके बंगले पर हाथापाई भी की थी, जिसकी खबर विभिन्न समाचार पत्रों और न्यूज़ चैनल में प्रमुखता से साया हुई थी। लेकिन इसके बावजूद एक बात जो देवनानी अपने कार्यकाल में कर गए, जो पत्थर पर लकीर बन गई थी। उन्होंने अधिशेष का पदस्थापन, नई नियुक्ति का प्रतिस्थापन व पदोन्नति पर पदस्थापन काउंसलिंग पद्धति से कराने का नियम बना दिया था। उस समय भाजपा के ही नेताओं ने इसका विरोध किया था, क्योंकि नियम के बनने से उनकी दुकानें चलना बंद हो गई थीं। किंतु देवनानी ने विरोध को दरकिनार करते हुए काउंसलिंग के नियम बनाए थे। तो क्या इस प्रकार की इच्छाशक्ति कांग्रेस सरकार भी दिखाएगी। गहलोत कांग्रेस सरकार रिपीट करने का दावा कर रहे हैं। अगर वे 14 लाख राज्य कर्मचारियों से जुड़े हुए विषय को वह हल करते हैं तो यह भी कांग्रेस के लिए फायदेमंद कदम हो सकता है। अब देखना यह है कि वर्तमान में दो सौ विधानसभा क्षेत्रों के हारे-जीते कांग्रेस प्रत्याशियों व कांग्रेस नेताओं का प्रभाव गहलोत पर ज्यादा रहता है या बिना किसी दबाव में आए कर्मचारियों को अपनी तरफ खींचते हैं। इसके लिए गहलोत के पास एक अंतिम अवसर है। विधानसभा का मानसून सत्र 14 जुलाई से शुरू होने वाला है। ऐसे में स्थाई तबादला नीति बनाकर उसके आधार पर तबादले किए जाने का कदम गहलोत उठाते हैं, तो राज्य कर्मचारी उनके मुरीद बन सकते हैं। राजस्थान के गांधी के रूप में पहचाने जाने वाले गहलोत का यह ब्रह्म वाक्य है कि हर गलती कीमत मांगती है, तो यह वाक्य तबादला उद्योग चलाने वालों पर भी लागू होगा। नए चयनित शिक्षकों को नियुक्तियां देने का कार्यक्रम शिक्षा विभाग ने जारी कर दिया है और डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन का कार्य प्रारंभ हो चुका है। शिक्षा विभाग इस कार्य को पूर्ण कर जल्दी जिलेवार सूचियां घोषित कर नियुक्ति प्रक्रिया प्रारंभ करने जा रहा है। ऐसे में वर्षों से कार्यरत तृतीय श्रेणी के शिक्षक, जो अपने गृह जिलों में जाने-आने का इंतजार कर रहे हैं, उनकी आशाओं पर पानी फिरने का अंदेशा है, क्योंकि नई नियुक्तियों से पद भर जाएंगे। ऐसी स्थिति में नई नियुक्तियां देने से पहले पूर्व में कार्यरत तृतीय श्रेणी के शिक्षकों का उनके गृह जिले अथवा गृह क्षेत्र में तबादला किया जाना चाहिए। खास बात यह है कि सरकार अगर राज्य कर्मचारियों की स्थाई तबादला नीति बनाती है, तो इसमें सरकार का एक पैसा भी खर्च नहीं होगाl यह पूर्णतः अनार्थिक मांग हैl हां यह जरूर है कि स्थाई तबादला नीति लागू हो जाती तो भ्रष्ट राजनेताओं और दलालों की तिजोरियां भरनी जरूर बंद हो जाएंगी।

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