*पापो का त्याग करके ही पवित्रता की प्राप्ति गुरुदेव श्री प्रियदर्शन*

संघनायक गुरुदेव श्री प्रियदर्शन मुनि जी महारासा ने फरमाया कि पापों का त्याग करके ही पवित्रता को प्राप्त किया जा सकता है। वनस्पतिकाय भी जीव है इसकी हिंसा से कैसे बचा जाए ,इसे समझना भी आवश्यक हैं। क्योंकि हमारे जीवन को जीने में वनस्पतिकाय का बहुत बड़ा योगदान है। जो अन्न हम खाते हैं वह भी तो वनस्पति काय ही है ।वनस्पति काय के जीव अपने प्राणों की कुर्बानी देकर हमें जीवन जीने में सहयोग प्रदान करते हैं ।हमने कभी उनके इस सहयोग या उपकार को स्वीकार किया या नहीं?
आप वनस्पति काय के जीवों की हिंसा से पूर्ण रूप से विरक्त नहीं हो सकते, क्योंकि दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आपको वनस्पति का उपयोग करना पड़ता है। लेकिन कम से कम वनस्पतिकाय की अनावश्यक हिंसा से तो बच सकते हैं।जैसे किसी कार्यक्रम में लॉन में खाना खाते हैं, उसे रौंदते हैं, तो वनस्पतिकाय को पीड़ा तो होती है ,मगर वह अभिव्यक्त नहीं कर सकती है ।जैसे किसी बुजुर्ग जो बोल नहीं सकता उसको अगर 25 साल का युवक मुक्का मारे तो क्या उसे पीड़ा नहीं होगी?पीड़ा तो होगी ही। उसे जितनी वेदना होती है ,उससे कहीं ज्यादा गुना वेदना वनस्पतिकाय को होती है ।ठीक है आप गए आपकी मजबूरी थी ,मगर प्रायश्चित स्वरूप अगले दिन आयम्बिल या नीवी कौन करते हैं ।आप प्रायश्चित करने की भावना अवश्य रखें। शादी विवाह में फूल माला, फूलों को उछालने का कार्यक्रम, पटाखे फोड़ना, सब का त्याग करना चाहिए ।शादी विवाह कार्यक्रम में बड़े बड़े आयोजनों में सलाद जमीकंद के आयोजनों से तो बचने का प्रयास करें। शादी विवाह में आप लोग स्टाल आदि पर मांसाहार के नाम पर स्टॉल का नाम रखते हैं तो यह रखकर आप अपने बच्चों को क्या सिखाने का प्रयास कर रहे हैं? आप स्वयं विचार करें ,तो अजमेर वालों और बाकी से भी आह्वान है कि आप कम से कम ऐसा संकल्प करें कि हम तो इन कार्यक्रमों में
हिस्सेदार नहीं बनेंगे .इनसे बचने का प्रयास करेंगे .अगर ऐसा प्रयास और पुरुषार्थ रहा तो यत्र तत्र सर्वत्र आनंद ही आनंद होगा।
धर्म सभा को पूज्य श्री सौम्यदर्शन जी महारासा ने भी संबोधित किया।
धर्म सभा का संचालन बलवीर पीपाड़ा ने किया।
पदम चंद जैन
* मनीष पाटनी,अजमेर*

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